नयी दिल्ली: सुप्रीम
कोर्ट ने जेसिका लाल हत्याकांड में झूठी गवाही देने के आरोप में एक
बैलिस्टिक विशेषज्ञ के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही निरस्त कर दी है। कोर्ट
ने कहा कि मूल दृष्टिकोण से अपना रूख बदलने के लिए उस पर कोई मंतव्य थोपना
अनुचित है।
न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने बैलिस्टिक विशेषज्ञ पी एस मनोचा को भारतीय दंड संहिता की धारा 193 के तहत आरोप से मुक्त करते हुए कहा कि उनका लगातार यही कहना था कि स्पष्ट राय तभी दी जा सकती है जब वारदात में प्रयुक्त संदिग्ध आग्नेयास्त्र उपलब्ध हो।
पीठ ने कहा कि हम यह समझने में विफल रहे कि अपीलकर्ता (मनोचा) का यह रूख किस तरह झूठी गवाही के अपराध का परिचायक हो सकता है। पीठ के अनुसार, अपीलकर्ता लगातार यही कहता रहा है कि एक विशेषज्ञ के रूप में निश्चित राय तभी दी जा सकती है जब संदिग्ध आग्नेयास्त्र जांच के लिये उपलब्ध हो। यह किसी का कहना नहीं है कि सिर्फ कारतूसों का निरीक्षण करके कोई विशेषज्ञ इस बारे में निश्चित राय दे सकता है कि क्या इन्हें उसी हथियार से दागा गया था। यह निचली अदालत ही थी जिसने हथियार के बगैर ही राय देने पर जोर दिया था और इस संदर्भ में अपीलकर्ता ने अस्पष्ट और अनिश्चित राय दी थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में एक विशेषज्ञ कोई भिन्न राय नहीं दे सकता और मनोचा के कथन को लेकर किसी प्रकार की मंशा थोपना अनुचित है। मनोचा ने एक विशेषज्ञ के रूप में इस हत्याकांड में 2000 में निचली अदालत में इस बारे में अपनी राय दी थी कि क्या उसी हथियार से जेसिका पर गोलियां दागी गयी थीं। मनोचा ने अपने लिखित बयान में कहा था कि प्रयोगशाला में हथियार के परीक्षण के अभाव में इस सवाल पर अंतिम राय देना संभव नहीं है जबकि उन्होंने अपनी मौखिक गवाही में कहा था कि ऐसा लगता है कि गोली अलग अलग हथियारों से दागी गयी हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2006 में इस हत्याकांड में फैसला सुनाते हुये इस मामले में मुकर गये गवाहों का स्वत: ही संज्ञान लिया था। उच्च न्यायालय ने 22 मई, 2013 को मनोचा के खिलाफ झूठी गवाही देने के आरोप में कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया था। जेसिका लाल को अप्रैल 1999 में हरियाणा कांग्रेस के नेता विनोद शर्मा के पुत्र मनु शर्मा ने गोली मार दी थी क्योंकि उसने बीना रमानी के रेस्तरां में देर रात चल रही पार्टी में उसे शराब परोसने से इनकार कर दिया था।
न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने बैलिस्टिक विशेषज्ञ पी एस मनोचा को भारतीय दंड संहिता की धारा 193 के तहत आरोप से मुक्त करते हुए कहा कि उनका लगातार यही कहना था कि स्पष्ट राय तभी दी जा सकती है जब वारदात में प्रयुक्त संदिग्ध आग्नेयास्त्र उपलब्ध हो।
पीठ ने कहा कि हम यह समझने में विफल रहे कि अपीलकर्ता (मनोचा) का यह रूख किस तरह झूठी गवाही के अपराध का परिचायक हो सकता है। पीठ के अनुसार, अपीलकर्ता लगातार यही कहता रहा है कि एक विशेषज्ञ के रूप में निश्चित राय तभी दी जा सकती है जब संदिग्ध आग्नेयास्त्र जांच के लिये उपलब्ध हो। यह किसी का कहना नहीं है कि सिर्फ कारतूसों का निरीक्षण करके कोई विशेषज्ञ इस बारे में निश्चित राय दे सकता है कि क्या इन्हें उसी हथियार से दागा गया था। यह निचली अदालत ही थी जिसने हथियार के बगैर ही राय देने पर जोर दिया था और इस संदर्भ में अपीलकर्ता ने अस्पष्ट और अनिश्चित राय दी थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में एक विशेषज्ञ कोई भिन्न राय नहीं दे सकता और मनोचा के कथन को लेकर किसी प्रकार की मंशा थोपना अनुचित है। मनोचा ने एक विशेषज्ञ के रूप में इस हत्याकांड में 2000 में निचली अदालत में इस बारे में अपनी राय दी थी कि क्या उसी हथियार से जेसिका पर गोलियां दागी गयी थीं। मनोचा ने अपने लिखित बयान में कहा था कि प्रयोगशाला में हथियार के परीक्षण के अभाव में इस सवाल पर अंतिम राय देना संभव नहीं है जबकि उन्होंने अपनी मौखिक गवाही में कहा था कि ऐसा लगता है कि गोली अलग अलग हथियारों से दागी गयी हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2006 में इस हत्याकांड में फैसला सुनाते हुये इस मामले में मुकर गये गवाहों का स्वत: ही संज्ञान लिया था। उच्च न्यायालय ने 22 मई, 2013 को मनोचा के खिलाफ झूठी गवाही देने के आरोप में कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया था। जेसिका लाल को अप्रैल 1999 में हरियाणा कांग्रेस के नेता विनोद शर्मा के पुत्र मनु शर्मा ने गोली मार दी थी क्योंकि उसने बीना रमानी के रेस्तरां में देर रात चल रही पार्टी में उसे शराब परोसने से इनकार कर दिया था।
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