अनुपम ने अपनी मां के मंदिर से पैसे चुराकर किया था एक्टिंग का कोर्स

अनुपम ने अपनी मां के मंदिर से पैसे चुराकर किया था एक्टिंग का कोर्स

अनुपम खेर टेलीविजन पर एक मशहूर शो को होस्ट करते हैं जिसका नाम है ‘कुछ भी हो सकता है’. अनुपम कुछ इस तरह कहते हैं. महात्मा गांधी बिना किसी गोली बारूद के अंग्रेजों से आजादी दिला सकते हैं तो कुछ भी हो सकता है. नदी तैर कर स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा लाल बहादुर शास्त्री बन सकता है तो कुछ भी हो सकता है. फिल्म गांधी में नेहरू की भूमिका मुझे नहीं मिली तो क्या हुआ….कुछ भी हो सकता है.

कुछ भी हो सकने की कहानियों में से एक है फिल्म अभिनेता अनुपम खेर की कामयाबी की कहानी. 61 साल के अनुपम खेर ने अपने 31 साल के फिल्मी करियर में एक से बढ़ कर एक यादगार भूमिका निभाई है. अनुपम ने अपने अभिनय से फिल्मी पर्दे पर कई किरदारों को अमर बना दिया.

उनकी गिनती देश के दिग्गज अभिनेताओं में होती है, पर आज अनुपम खेर अभिनेता कम नेता ज्यादा बन गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जब भी कोई राजनीतिक या वैचारिक हमला होता है तो अनुपम खेर प्रधानमंत्री की सुरक्षा कवच बन कर सामने खड़े हो जाते हैं.

अनुपम खेर एक बार फिर सुर्खियों में हैं. इस बार उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ विरोध की आवाज बुलंद की है. अनुपम खेर पाकिस्तान जाना चाहते थे लेकिन पाकिस्तान ने उन्हें वीजा देने से मना कर दिया. क्या अनुपम खेर पाकिस्तान जाकर कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा पर पाकिस्तान को घेरना चाहते थे? क्या अनुपम खेर दक्षिणपंथी हिन्दू विचारधारा समर्थक कलाकार और बुद्धिजीवियों का सबसे बड़ा चेहरा बनना चाहते हैं?

आज हम एक मामूली क्लर्क के बेटे के एक छोटे से शहर से बॉलीवुड के सतरंगी आसमान में उड़ने के सफर की कहानी बताएंगे लेकिन पहले जिस कश्मीर और कश्मीरी पंडितों के मुद्दे को लेकर अनुपम खेर चर्चा में हैं, आइए जानने की कोशिश करते हैं उस कश्मीर में 26 साल पहले हुआ क्या था?
अनुपम खेर ने हाल ही में कश्मीरी पंडितों के ऊपर एक छोटी सी फिल्म बनाई थी. उस फिल्म में अनुपम कहते हैं.
मैं एक कश्मीरी पंडित हूं. भारतीयता की भावना का सच्चे मन से विश्वास करने वाला, इस देश का एक शांतिपूर्ण, अहिंसक, धर्मनिरपेक्ष, शिक्षित कानून का आदर करने वाला देशभक्त नागरिक. 26 साल पहले आज ही के दिन मुझे अपने घर से बेघर कर दिया गया. ये मेरी कहानी है.

अनुपम खेर कश्मीरी पंडित हैं. कश्मीरी पंडितों के मुद्दे को वो पिछले कुछ सालों से अपने सीने से चिपका कर चलते हैं. अनुपम खेर का जन्म और उनकी परवरिश यूं तो शिमला में हुई थी लेकिन उनके परिवार का कश्मीर से पुश्तैनी नाता है. कश्मीर में करीब ढाई दशक पहले पंडितों के साथ जो जुल्म ढाया गया था उसकी दास्तां अनुपम ने अपनी इस छोटी सी फिल्म में बयां की है.

अनुपम खेर अपनी फिल्म में पंडितों की दुर्दशा को कुछ इस तरह बयां करते हैं. ‘1999 के शरद ऋतु के आते-आते कश्मीर में आतंकवादियों का बोलबाला था. राज्य सरकार ने अपने सभी जिम्मेदारियों का त्याग कर दिया था और किसी प्रकार का कोई प्रशासन नहीं रह गया था. आंतकियों के फरमानों ने कश्मीर घाटी को अपने लपेटे में ले लिया था. ऐसा लगता था जैसे भारतीय होना मानो एक गाली हो. आंतकवादी हिट लिस्ट जारी करने में लगे हुए थे. हर वो शख्स जो भारत समर्थक था, उसे मुखबिर करार दिया जाता था. उसको मारना जेहाद था और पुण्य भी. अनगिनत अज्ञात पंडितों की निर्मम हत्यायें की गई’. दिल्ली में रह रहे कश्मीरी पंडितों का कहना है कि अनुपम जो कुछ कह रहे हैं वो ठीक कह रहे हैं.

दिल्ली में रहते हैं विजय टिक्कू. 1991 में जेहादियों के विरोध के बाद किसी तरह जान बचाकर इनका परिवार दिल्ली चला आया था. विजय टिक्कू 38 साल की उम्र में अपनी बसी बसायी जिंदगी छोड़ने को मजबूर कर दिये गए थे. विजय की उम्र अब 63 साल हो चुकी है. आज इनके पास अपनी बर्बादी के इतिहास के पन्ने पलटने के सिवा कुछ भी नहीं है.
विजय टिक्कू का दर्द कुछ इस तरह फूट पड़ता है. ‘वो एक ऐसा माहौल था जो एक आज भी हम अगर कभी सोचते है तो ऐसा पूरी कपकपी पूरे शरीर में होती है क्योंकि रात के अंधेरे में हमे निकलना पड़ा और 19 जनवरी को चारो तरफ से, मस्जिदों से लाउडस्पीकर चल रहे थे और लाखों-हजारों लोग जो कश्मीर मुस्लिम थे वो हर मुहल्ले में मशालें ले कर निकल गए थे कि यहां क्या चलेगा निजामे मुस्तफा.. आजादी का मतलब क्या ला इला इल लिल्ला और पूरा ऐसा लग रहा था जैसे आजादी बस कुछ उनको दो चार दिनों की बात है आजादी. उनको मिलने वाली है और एक ऐसा खौफनाक माहौल कर दिया था कि घरों में उन्होंने थ्रेटेनिंग लेटर्स लगा दिए थे’.

अनुपम खेर ने अपनी फिल्म में करीब 26 साल पहले कश्मीरी पंडितों के साथ हुई दुर्दशा के बारे कुछ इस तरह कहते हैं. ‘4 जनवरी 1990 को आफताब समाचार पत्र में हिजबुल मुजाहिद्दीन ने प्रेस विज्ञप्ति प्रकाशित करके सभी हिंदुओं से घाटी छोड़ने के लिए कहा, एक अन्य समाचार पत्र अलसफा में भी यही प्रेस विज्ञप्ति छपी. जल्द ही यही नोटिस कश्मीरी पंडितों के घरों के दरवाजे पर चिपका दिये गए. 19 जनवरी 1990 के उस दुर्भाग्यपूर्ण रात में कश्मीर को ऐसा ग्रहण लगा मानो अंधेरे ने प्रकाश को अपने आगोश में निगल लिया हो’.

कमल हाक दिल्ली में रहते हैं. श्रीनगर के लाल चौक से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर इनका राइनवारी में घर था. 21 अप्रैल 1990 को इन्हें राजधानी दिल्ली आने को मजबूर होना पड़ा. तीन दिन तक इन्हें दिल्ली में फुटपाथ पर सोना पड़ा. मुश्किल से नौकरी मिली. श्रीनगर की बसी बसाई जिंदगी को छोड़ने के बाद कमल को दिल्ली में नए सिरे से एक नई जिंदगी शुरू करनी पड़ी.

कमल हाक की आंखों में आज भी उनकी बर्बादी की कहानी कैद है. ‘हमारे वहां पर अपने घर थे, जमीनें थीं. दो जगह पर घर बने हुए थे. एक तो हमारा रैनाबाड़ी में था और एक डल के किनारे निशाद के पास एक जगह है ईश्वर वहां पर बना था लेकिन हुआ ये कि आपका नाम मस्जिदों से पुकारा गया कि आप लोग मुखबिर हैं आप लोग यहां से चले जाओ. हमारे घर में हम ज्वाइंट फैमिली में रहते थे. हमारे फादर हमारे चाचा चाची सबलोग थे.. एक अंकल के ऊपर अटैक हुआ तो वहां पे मिलिटेंन्ट्स आये उनको मारने के लिए. वो तो हमारा सौभाग्य था कि वो बच गए. वहां से हमारे यहां पे हमारी एक आंटी गाड़ी में जा रही थी. उनको मारने की कोशिश की गई. मैं एक बार घर पे था तो हमारा एक पड़ोसी पेट्रोल का ड्रम लेकर आया हमारे घर को जलाने की उसने कोशिश की और फाइनली एक दिन मस्जिद में मेरा नाम लेकर कहा गया कि अब तो ये हिट लिस्ट पे हैं. अब इनकी बारी है.

कश्मीरी पंडितों के पलायन और विस्थापन की जो कहानी अनुपम खेर सुना रहे हैं उसकी शुरुआत 1990 के दशक में हो गई थी. जिस वक्त कश्मीरी पंडित अपना घर बार छोड़ कर दूसरे शहर में जाने को मजबूर हो रहे थे, उस समय अनुपम खेर बॉलीवुड में एक चर्चित कलाकार के रूप में स्थापित हो चुके थे. देश दुनिया की अहम घटनाओं पर नजर रखने वाले चिंतक और विश्लेषक सवाल पूछ रहे हैं कि अनुपम खेर तब कश्मीरी पंडितों के
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मुद्दे को क्यों नहीं उठाया था? क्या विरोध की ये आवाज किसी राजनीतिक फायदे के लिए तो नहीं उठाई जा रही है?
अनुपम खेर का जन्म 7 मार्च 1955 को शिमला में हुआ था. उनके पिता पुष्कर नाथ पेशे से क्लर्क थे. अनुपम ने अपनी स्कूल की पढ़ाई शिमला में की. उनका परिवार काफी बड़ा था. उनके माता-पिता, भाई के अलावा चाचा का पूरा परिवार साथ में रहता था. अनुपम के पिता 90 रुपए की तनख्वाह से पूरे घर का खर्च चलाते थे. पैसों की तंगी की वजह से अनुपम की मां को अपने गहने तक बेचने पड़े. गरीबी के उस दौर में भी अनुपम को जेब खर्च मिल जाता था जो 10 पैसे हर महीने था. ये पैसे भले कम हो, लेकिन अनुपम के सपने बचपन से ही काफी बड़े थे. उनके सपनों को पंख लगाने में उस जमाने की दो फिल्मों की बड़ी भूमिका रही.



पहली बार अनुपम खेर का रुझान फिल्मों की तरफ हुआ. उसी दौरान एक फिल्म आई उपकार. सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले अनुपम को ये फिल्म भी बहुत पसंद आई. फिर क्या था पांचवीं कक्षा में पढ़ते हुए उन्होंने अपने स्कूल में एक्टिंग शुरू कर दी. स्कूल के बाद कॉलेज में भी अनुपम दोस्तों के बीच काफी मशहूर थे.



कॉलेज के दिनों से ही अनुपम के ऊपर एक्टिंग का भूत सवार हो गया था. उन्हीं दिनों अनुपम ने अखबार में एक विज्ञापन देखा जिसमें 100 रुपए में एक्टिंग कोर्स का विज्ञापन निकला था, उस दौर में अनुपम के लिए 100 रुपए काफी ज्यादा थे और उनकी पिता से पैसे मांगने की हिम्मत नहीं थी. बस फिर क्या था, अनुपम ने अपनी मां के मंदिर से पैसे चुराने का फैसला किया.


70 के दशक में पंजाब यूनिवर्सिटी के थियेटर डिपार्टमेंट में उनकी मुलाकात मशहूर लेखक और नाटककार बलवंत गार्गी और आमल अनाना के साथ हुई. उनके साथ नाटक करते हुए अनुपम ने ढेर सारी बातें सीखीं. अनुपम की मेहनत रंग लाई और वो पंजाब यूनिवर्सिटी के थियेटर डिपार्टमेंट में गोल्ड मैडलिस्ट बने. यहीं से अनुपम नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा यानी एनएसडी पहुंच गए.

1978 में एनएसडी से निकलने के बाद अनुपम ने सोचा कि वो थियेटर करते रहेंगे, लेकिन जिंदगी इतनी आसान नहीं होती, दिल्ली के बंगाली मार्केट में अनुपम को कई बार दोस्तों से उधार लेकर काम चलाना पड़ा. मुफलिसी के उस दौर में अनुपम को लखनऊ के भारतेंदु हरिशचंद्र ड्रामा सेंटर से एक टीचर की नौकरी का ऑफर आया और अनुपम ने वो नौकरी ज्वाइन कर ली. एक साल तक अनुपम ने काम किया, लेकिन उनके अंदर का ऐक्टर जोश दिखाने लगा और नौकरी में उनका मन नहीं लगता था, लेकिन दिक्कत ये थी कि बिना पैसे के काम कैसे होगा. अनुपम के एक दोस्त ने सलाह दी कि क्यों ना वो मुंबई में टीचर की नौकरी कर लें और साथ ही फिल्मों में अपनी किस्मत भी आजमाते रहें. 1981 में अनुपम ने मुंबई का रुख किया.

25 मई 1984 को रिलीज हुई थी फिल्म सारांश. 32 साल पहले पर्दे पर आई इस फिल्म ने तब 28 साल के अनुपम खेर की जिंदगी को बदल कर रख दिया था. इस फिल्म के आने से पहले अनुपम खेर मुंबई की सड़कों पर फिल्मों में काम की तलाश में भटका करते थे. इस फिल्म ने एक ही दिन में अनुपम को बॉलीवुड में एक बड़े कलाकार के रूप में स्थापित कर दिया था. . फिल्म में इकलौते बेटे को खो देने के बाद जिंदगी की जंग लड़ते महाराष्ट्रीय बुजुर्ग दंपति के दर्द को दिखाया गया है. 28 साल की उम्र में अनुपम ने इस फिल्म में 65 साल के बुजुर्ग की भूमिका निभाई थी. ये फिल्म माता-पिता के भरोसे और संघर्ष के साथ ही आदर्शों के टूटने की कहानी भी कहती है.

इस फिल्म में अनुपम के ब्रेक मिलने की कहानी भी कोई कम दिलचस्प नहीं है. 1980 के दशक का शुरुआती साल था. अनुपम मुंबई के एक चॉल में रहने को मजबूर थे. इनके चॉल का पता था अनुपम खेर 2/15 खेरवाड़ी, खेरनगर, खेर रोड. ये महज इत्तफाक था कि अनुपम जिस घर में रहते थे उसका पता उनके सरनेम यानी खेर से जुड़ा था.

अनुपम खेर को भरोसा था कि उनके सपने इसी मायानगरी में पूरे होंगे. सपनों को पूरा करने के लिए पैसे की भी जरूरत होती है, लेकिन अनुपम के पास ना तो काम था और ना पैसा. इस मुश्किल हालात में उन्हें अपने छोटे भाई की याद आई जो शिमला की एक फैक्ट्री में काम करते थे. छोटे भाई राजू से उन्हें पैसों की थोड़ी मदद मिली.

संघर्ष के उस दौर में एक दिन अचानक उनकी मुलाकात जाने-माने फिल्मकार महेश भट्ट से हुई. महेश को पता था कि अनुपम एक बहुत अच्छे स्टेज कलाकार हैं. इसलिए उनकी तारीफ करते हुए कहा कि ‘मैंने सुना है तुम बहुत अच्छे कलाकार हो, तब अनुपम ने जवाब दिया आपने गलत सुना है मैं अच्छा नहीं सबसे बेहतर हूं. इस जवाब से महेश अनुपम के कायल हो गए . और उन्होंने वादा किया कि वो एक दिन अनुपम को अपनी फिल्म में जरूर काम देंगे. आखिरकार वो दिन भी आ गया जब महेश भट्ट ने अनुपम को फिल्म सारांश में काम करने का ऑफर दिया. अनुपम को सारांश का ऑफर तो मिला, लेकिन कुछ दिन बाद ही पता चला कि उस रोल के लिए सुपर स्टार संजीव कुमार को साइन करने की बात चल पड़ी है. जब अनुपम को पता चला तो उन्होंने महेश भट्ट को धोखेबाज तक कह डाला और खूब लड़ाई की.

28 साल के अनुपम ने 65 साल के बुजुर्ग का ऐसा किरदार निभाया कि उस दौर के बड़े-बड़े स्टार भी दंग रह गए थे. इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला.

सारांश की रिलीज के बाद अनुपम को 10 दिन के अंदर ही 100 फिल्मों के ऑफर मिल गए. अनुपम के सपनों के पंख लग गए थे. उसके बाद उन्होंने कभी मुड़कर नहीं देखा.

अनुपम खेर को फिल्मों में हीरो के रूप में हमेशा कोई मुख्य भूमिका नहीं मिली लेकिन सहायक कलाकार की भूमिका में भी उन्होंने कई बेमिसाल किरदारों को निभाया है. साल 1989 में महेश भट्ट की फिल्म ‘डैडी’ आई थी. इस फिल्म में अनुपम ने एक शराबी पिता की भूमिका निभाई थी जो खुद से दूर जा चुकी बेटी को पाने के लिए संघर्ष करता है. इस फिल्म में अनुपम की भूमिका का खूब सराहा गया था.

साल 2005 में जाहनु बरुआ के निर्देशन में फिल्म आई थी ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’. इस फिल्म में अनुपम खेर ने डिमेनशिया बीमारी से पीड़ित हिन्दी के शिक्षक उत्तम चौधरी का किरदार निभाया था. अपने इस अभिनय से अनुपम ने लाखों सिनेमाप्रेमियों का दिल जीत लिया था.

2006 में आई थी फिल्म खोसला का घोसला. इस फिल्म में जहां बमन ईरानी ने एक धूर्त भूमाफिया का अभिनय किया है वहीं सीधे सादे आम आदमी की भूमिका में अनुपम खेर ने फिल्म को अपने अभिनय से यादगार बना दिया है.

फिल्म वीर जारा में वकील जाकीर अहमद को भला कौन भूल सकता है. फिल्म हम आपके हैं कौन में अपने कमेडी से अनुपम से एक अलग पहचान बनाई. ‘अ वेडनसडे’, ‘1942: अ लव स्टोरी’, ‘स्पेशल 26’ ‘राम लखन’, ‘विजय’, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘दिल’, ‘सौदागर’, ‘हम आपके हैं कौन’ और ‘चाहत’. ये वो फिल्में हैं, जिनका जिक्र किए बगैर अनुपम खेर की बेहतरीन फिल्मों की फेहरिस्त पूरी नहीं कही जा सकती.

अनुपम खेर बुलंदियों के आसमान पर थे. तभी उनकी जिंदगी में एक तूफान आया. अनुपम के चेहरे पर लकवा मार दिया. जिस फिल्म का उन्होंने पहली बार निर्देशन किया वो फिल्म नहीं चली. अनुपम दिवालिया हो चुके थे. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.

अनुपम खेर की कामयाबी की कहानी सिर्फ फिल्मों तक सिमटी नहीं है. उन्होंने टीवी पर कई लोकप्रिय शो को होस्ट किया है. अनुपम का शो कुछ भी हो सकता है काफी लोकप्रिय है.

अनुपम कभी अपनी कॉमेडी से लोगों को हंसाते हैं तो कभी विलेन बनकर डराते हैं. वो हर रोल में फिट बैठते हैं इसलिए उन्हें एक्टिंग स्कूल तक कहा जाता है लेकिन अनुपम आजकल अपने एक्टिंग के लिए नहीं दूसरी वजहों से चर्चा में हैं.

पिछले साल अक्टूबर की बात है. बीफ खाने के शक में अखलाक नाम के एक शख्स की दिल्ली के नजदीक दादरी में लोगों ने पीट-पीट कर हत्या कर दी थी. देश में असहिष्णुता को लेकर बहस छिड़ी हुई थी. उसी दौरान फिल्म अभिनेता आमिर खान का एक बयान आया. आमिर ने कहा कि उनकी पत्नी किरण राव ने उन्हें भारत छोड़ने का सुझाव दिया था. इस बयान के बाद अनुपम खेर ने आमिर के ऊपर सवालों का बौछार कर दिया. अनुपम खेर ने ने ट्वीट किया कि डियर आमिर खान, क्या आपने किरन को बताया कि आप इस देश में इससे भी बुरा दौर देख चुके हैं, लेकिन आपने कभी देश छोड़ने के बारे में सोचा भी नहीं. अनुपम ने एक ट्वीट में आमिर से सवाल किया, ‘क्या आपने किरन से पूछा कि वो भारत छोड़कर किस देश में जाना चाहेंगी. क्या आपने उन्हें बताया कि इसी देश ने आपको आमिर खान बनाया है.’

कुछ महीने पहले की बात है. असहिष्णुता के मुद्दे पर देश में कई फिल्मकार और साहित्यकार अपना अवॉर्ड लौटा रहे थे. मोदी सरकार विरोधियों के निशाने पर थी. तभी एक बार फिर अनुपम खेर सरकार के समर्थन में उतर आए. अनुपम ने दिल्ली में असहिष्णुता की बात करने वालों के खिलाफ ही धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया. अनुपम का कहना था कि देश में ऐसे भी हालात नहीं है जैसा दिखाए जाने की कोशिश की जा रही है. अनुपम ने दिल्ली के नेशनल म्यूजियम से राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकाला. उनके साथ देश की कई जानीमानी हस्तियां मौजूद थीं.

अनुपम खेर पर आरोप लग रहा है कि उनकी पत्नी किरण खेर बीजेपी सांसद हैं इसकी वजह से वो सरकार का पक्ष ले रहे हैं. हालांकि अनुपम इन आरोपों से इनकार करते हैं उनका कहना है कि कुछ लोग देश का नाम विदेश में बदनाम कर रहे हैं, इसलिए किसी को तो आवाज उठानी ही होगी इसलिए वो उन लोगों के खिलाफ हैं जो मोदी सरकार को बदनाम कर रहे हैं.

2004 में सीपीएम के पूर्व महासचिव हर किशन सिंह सुरजीत ने एक लेख में अनुपम खेर को आरएसएस का सदस्य बताया था. इसके बाद अनुपम ने कम्यूनिस्ट नेता सुरजीत के खिलाफ मानहानि का मुकदमा कर दिया था. सीपीएम नेता की तबीयत जब बेहद खराब हो गई थी तब खेर मुकदमा वापस ले लिया था. अटल बिहारी जब देश के प्रधानमंत्री थे तब अनुपम खेर को सेसर बोर्ड और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का चेयरमैन बनाया गया था. इसी साल अनुपम खेर को फिल्मों में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित करने का फैसला लिया गया है.

2011 में यूपीए सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर दिल्ली में अन्ना हजारे ने आंदोलन की शुरुआत की थी. आंदोलन शुरू होते अनुपम खेर इससे जुड़ गए. भ्रष्टाचार के खिलाफ अरविंद केजरीवाल जब अन्ना हजारे के साथ आंदोलन की अलख जगा रहे थे तो अनुपम खेर इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे.

पाकिस्तान का एक बड़ा शहर है कराची. कराची में पाकिस्तानी लेखक और चिंतक हर साल साहित्य उत्सव का आयोजन करते हैं. इस समारोह में पाकिस्तान सहित कई देशों के साहित्यकार और फिल्मी हस्तियां शामिल होती हैं. देश विदेश के बुद्धिजीवी और चिंतक दुनिया के अहम विषयों पर यहां बहस और चर्चा करते. इस साहित्य समारोह में शामिल होने के लिए भारत के 18 जाने-माने साहित्यकार, पत्रकार और फिल्मी हस्तियों को आमंत्रित किया गया था. इनमें से एक अनुपम खेर भी थे. साहित्य महोत्सव 5 फरवरी को शुरू होने वाला था. अनुपम खेर ने कराची जाने की तैयारी पूरी कर ली थी. ऐन वक्त पर उन्हें बताया गया कि पाकिस्तान ने वीजा देने से इनकार कर दिया है.

कराची साहित्य समारोह में शामिल होने के लिए जिन 18 भारतीयों को जाना था उनमें अनुपम खेर को छोड़ कर सभी 17 लोगों को पाकिस्तान दूतावास ने वीजा दे दिया. वीजा नहीं मिलने से अनुपम खेर आग बबूला हो उठे. उन्होंने आरोप लगाया कि वो कश्मीरी पंडित हैं और प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में बोलते हैं शायद इसलिए उन्हें वीजा नहीं दिया गया.

अनुपम खेर ने कहा, हो सकता है कि इसकी वजह कश्मीरी पंडित को लेकर मेरे विचार हों या फिर यह भी हो सकता है कि मैं खुलकर अपनी देशभक्ति दिखाता हूं जो उन्हें हजम नहीं हो पाता हो और इसीलिए उन्होंने मेरा नाम पाकिस्तान जाने वालों की लिस्ट से काट दिया. मुझे लगता है कि मेरी देशभक्ति की वजह से उन्हें मुझे अपने यहां बुलाना गलत लग रहा होगा.

अनुपम ने बताया कि उन्हें दो महीने पहले ही कराची साहित्य समारोह में शामिल होने का निमंत्रण भेजा गया था. उन्होंने समारोह के अलावा पाकिस्तान के न्यूज चैनल जियो टीवी और कई दूसरे कार्यक्रमों में भी शामिल होने को लेकर तैयारी कर ली थी. अनुपम बताते हैं कि वो पाकिस्तान जाकर वहां के लोगों से बात करना चाहते थे. पाकिस्तानियों को ये बताना चाहते थे कि भारत कितना सहिष्णु देश है.

अनुपम खेर ने कहा कि सहिष्णुता की मिसाल है, और भी कई बातें उनके साथ करना चाहता था. यहां के कल्चर के बारे में उन्हें बताना चाहता था और भी कई बातों पर उनसे करना चाहता था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. हमारी सरकार काफी काम कर रही है और मैं खुद उनसे इस बारे में बताना चाहता था.

पाकिस्तान हाई कमिशन ने अनुपम खेर के वीजा नहीं देने के इस आरोप को सरासर गलत बताया. पाकिस्तान दूतावास की तरफ से कहा गया कि अनुपम खेर की तरफ से उसे वीजा के लिए आवेदन नहीं मिला था. इसके बाद पाकिस्तान के हाई कमिश्नर अब्दुल बासित ने अनुपम को फोन करके वीजा ऑफर किया. लेकिन अनुपम खेर ने ये कह कर वीजा लेने से मना कर दिया कि उन्होंने अपनी डेट्स किसी और को दे दी है. पाकिस्तान उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने कहा, ‘अनुपम खेर साहब, आपका हमेशा स्वागत है. आप एक महान कलाकार हैं, हम आपका सम्मान और आपकी तारीफ करते हैं.’

अनुपम खेर कहते हैं कि वो पाकिस्तान जाकर भारत की सहिष्णुता के बारे में वहां के लोगों को बताना चाहते थे. हाल के वर्षों में अनुपम खेर बॉलीवुड में मोदी के सबसे बड़े समर्थकों में से एक बन कर सामने आए हैं. जब भी मोदी के खिलाफ बॉलीवुड से आवाज उठती है अनुपम प्रधानमंत्री के पीछे चट्टान की तरह खड़े हो जाते हैं. क्या अनुपम खेर अपनी पत्नी की तरह ही राजनीति में नये किरदार की भूमिका की तैयारी तो नहीं कर रहे हैं.

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मोनार्क टाइम्स । Monarch Times: अनुपम ने अपनी मां के मंदिर से पैसे चुराकर किया था एक्टिंग का कोर्स
अनुपम ने अपनी मां के मंदिर से पैसे चुराकर किया था एक्टिंग का कोर्स
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