ये हैं बजट के वो आठ बड़े वादे जो पूरे नहीं कर पाई सरकार

 वित्त मंत्री अरुण जेटली
मोदी सरकार अपने कार्यकाल का तीसरा बजट बनाने में जुटी हुई है। लेकिन पिछले बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कई ऐसे बड़े ऐलान किए थे जो अबतक पूरे नहीं हो पाए हैं। पिछले दिनों वित्त मंत्रालय ने ट्विटर पर एक ग्राफिक्स पोस्ट कर बताया कि सरकार ने पिछले बजट में जो ऐलान किया था उसे पूरा भी किया। लेकिन वो जो बताना भूल गई वो ये कि कौन से वादे अब भी पूरे नहीं हुए। देखिए किन वादों को पूरा करने से चूक गई सरकार।


आरबीआई और वित्त मंत्रालय
सरकारी कर्ज के मैनेजमेंट के लिए बनानी थी एजेंसी: पीडीएमए यानी पब्लिक डेट मैनेजमेंट एजेंसी लाने का वादा बजट के बाद सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहा। लेकिन सरकारी कर्ज के मैनेजमेंट के लिए सरकार और आरबीआई से बराबर दूरी रखने वाली इस संस्था के प्रस्ताव को अभी तक कैबिनेट से ही मंजूरी नहीं मिली है। इसे फाइनेंशियल सेक्टर के सबसे बड़े रिफॉर्म में गिना जा रहा था लेकिन इसे लेकर आरबीआई और वित्त मंत्रालय के बीच मतभेद थे।


संसद
संसद में अटका दिवालिया संहिता बिल: इंडस्ट्री और निवेशक के बीच आर्थिक सुधार के मोर्चे पर बैंकर्प्सी कोड जीएसटी के बराबर का महत्व रखता है। लेकिन अभी तक ये हकीकत नहीं बन पाया है और बिल संसद में अटका है। इस बिल के लागू होने पर बीमार (दिवालिया) इकाइयों के बंद होने या इन्हें फिर से चालू करने का रास्ता साफ हो सकता है। देश में ऐसी बीमार इकाइयों की संख्या 5.37 लाख है। बिल में प्रावधान है कि दिवालिया हो चुकी कंपनी को 180 दिन में बंद करने का निर्णय करना होगा। इसके लिए 75 फीसदी कर्जदाताओं की सहमति जरूरी होगी और इस बिल से कर्जदाताओं को पैसा वसूलने में आसानी होगी। कंपनी की संपत्ति बेचने की लिए एक्सपर्ट की खास टीम बनाई जाएगी जो मैनेजमेंट की जगह लेगी। माना जा रहा है कि बैंकरप्सी बिल पास होने से भारत की बिजनेस आसान होगा और उसकी रैंकिंग सुधरेगी। इस बिल के लागू होने से पैसे नहीं चुकाने वाले प्रमोटरों पर शिकंजा कसना आसान होगा।


 इंडियन फाइनेंशियल
वित्तीय गड़बड़ियों के लिए बनना था आईपीसी जैसा कानून: इंडियन फाइनेंशियल कोड को अभी तक कैबिनेट से भी मंजूरी नहीं मिली है। फाइनेंशियल सेक्टर रिफॉर्म के मोर्चे पर ये सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है। इससे इस सेक्टर में रेगुलेशन काफी आसान हो जाता। लेकिन अभी तक इस पर फैसला तो दूर, प्रस्ताव तक कैबिनेट से मंजूर नहीं हो पाया है। कानून-व्यवस्था से जुड़े मामलों में कार्रवाई के लिए इंडियन पैनल कोड है, ठीक उसी प्रकार वित्तीय क्षेत्र के लिए इंडियन फाइनेंशियल कोड होगा। इसमें वित्तीय क्षेत्र के ग्राहकों के साथ होने वाली गड़बड़ी को नियंत्रित करने और कार्रवाई करने संबंधी नियम-कानून होंगे। देश के वित्तीय क्षेत्र में पारदर्शिता लाने और जिम्मेदारी तय करने का भी तंत्र टास्क फोर्स विकसित करेगा। बैंक, बीमा, शेयर बाजार सहित सभी वित्तीय संस्थानों से जुड़ी शिकायतों का निस्तारण संभव होगा।


किसानों के लिए नहीं बन पाया यूनीफाइड एग्रीकल्चर मार्केट
किसानों के लिए नहीं बन पाया यूनीफाइड एग्रीकल्चर मार्केट: कृषि उत्पा दों के एक बाजार से दूसरे बाजार तक मुक्त। प्रवाह, मंडी के अनेकों शुल्कों से उत्पादकों को बचाने और उचित मूल्य पर लोगों को कृषि उत्पाद मुहैया कराने के लिए सरकार ने यूनीफाइड एग्रीकल्चर मार्केट बनाने का अहम फैसला लिया था लेकिन वो भी जमीन पर उतर नहीं पाया है। 20 राज्यों ने अपनी हामी तो भर दी है लेकिन कारगर तौर पर इसे लागू करने में अभी तीन साल और लगेंगे। इस बाजार के बनने से किसानों को भारी फायदा होता। फसल के सही दाम मिलते और बिचौलिए की भूमिका कम होती।


विनिवेश के मुद्दे पर फिसड्डी रही सरकार: सरकार ने चालू वित्तप वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्र के उप्रक्रमों से हिस्से।दारी बेचकर 41 हजार करोड़ और रणनीतिक हिस्सेेदारी बेचकर 28 हजार 500 करोड़ यानी कुल 69 हजार 500 करोड़ रुपए विनिवेश से जुटाने का लक्ष्य रखा था लेकिन वो मुश्किल से 12 हजार 700 करोड़ रुपये ही जुटा पाई है। सरकार ने इंडियन ऑयल, आरईसी, पीएफसी और ड्रेजिंग कार्पोरेशन में अपनी हिस्सेीदारी बेचकर ये पैसे जुटाए। घाटे वाली सरकारी कंपनियों में विनिवेश में तो पूरी तरह नाकाम रही।


पोस्ट ऑफिस को बैंक बनाने का काम धीमा: पोस्ट ऑफिस को बैंक बनाने की सरकार की घोषणा परवान नहीं चढ़ सकी। पोस्ट ऑफिस में बैंक की सुविधाएं अभी तक शुरू नहीं हो पाई हैं। अभी तो सिर्फ रिजर्व बैंक से लाइसेंस ही मिल पाया है। लेकिन पोस्ट ऑफिस अभी तक बैंक की सुविधाएं देने के लिए तैयार नहीं हो पाया है। सब कुछ सही चला तो 2017 के मार्च तक ही पोस्ट ऑफिस हमें बैंकों की तरह काम करते दिखेंगे।



ब्लैक मनी पर स्कीम तो आई लेकिन मनी नहीं: बजट में काला धन का खुलासा करने वालों के लिए खास स्कीम लाने का ऐलान किया गया था। स्कीम तो आई लेकिन काला धन नहीं आया। 90 दिन सरकार ने स्कीम चलाई और सामने आए महज 3770 करोड़ रुपये। इससे सफल तो 1997 में गुजराल सरकार में वित्त मंत्री पी चिदंबरम की वीडीआईएस स्कीम रही जब न सिर्फ 33 हजार 697 करोड़ रुपये सामने आए बल्कि सरकार को उसपर टैक्स से मिले तकरीबन 10 हजार करोड़।

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ये हैं बजट के वो आठ बड़े वादे जो पूरे नहीं कर पाई सरकार
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