नई दिल्लीः पिछले साल 26 अक्टूबर को पूरी गर्मजोशी के साथ गीता को पाकिस्तान से भारत लाया गया था. गीता बोल सुन नहीं सकती थी, 11 साल की उम्र में वो गलती से सीमा पार कर पाकिस्तान पहुंच गई. सरकार की कोशिशों से 13 साल बाद जब उसे भारत लाया गया तो ये उम्मीद जगी कि जल्दी ही वो अपने बिछड़े मां बाप से मिल पाएगी.
लेकिन तमाम शोर गुल के बाद कुछ नहीं हुआ. 8 महीने बीत चुके हैं. गीता को उसका परिवार अब तक नहीं मिला है और ऐसा लग रहा है जैसे देश भी गीता को भूल चुका है.
गीता के ये इंतजार की ये वो कहानी है जिसे सरहदें भी नहीं रोक पायीं. बरसों पहले अपने परिवार,अपने मां बाप से बिछड़ी इस लड़की का इंतजार अब भी खत्म नहीं हुआ है.
गीता सिर्फ 11 साल की थी जब वो गलती से सीमा पार कर पाकिस्तान पहुंच गई. छोटी सी उम्र में अपने परिवार से बिछड़ी गीता को तब अंदाजा भी नहीं था कि उसे अपने परिवार से मिलने के लिए कितना इंतजार करना पड़ेगा. करीब डेढ़ दशक एक पराए मुल्क में गुजारने के बाद एक उम्मीद की किरण तब जगी जब पिछले साल सलमान खान की फिल्म बजरंगी भाई रिलीज हुई.
उस फिल्म में पाकिस्तान की एक ऐसी बच्ची की कहानी थी जो भारत पहुंच गई थी. बजरंगी भाईजान बने सलमान खान उस बच्ची को पाकिस्तान तक पहुंचाते हैं. इसके बाद ही उस वक्त पाकिस्तान में रह रही गीता की कहानी सामने आयी. गीता तब कराची में ईधी फाउंडेशन नाम की संस्था के पास थी. उसकी कहानी सामने आने के बाद गीता को भारत लाने की कोशिशें शुरू हो गईं. अक्टूबर 2015 में गीता भारत पहुंची तो पूरी गर्मजोशी से उसका स्वागत हुआ. तब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ये एलान किया था कि जल्द से जल्द गीता को भारत में उसके बिछड़े परिवार से मिलाने की कोशिश की जाएगी.
आठ महीने पहले उम्मीदों से भरी गीता तब से इस इंतजार में है कि कब वो अपने मां बाप से मिलेगी. गीता पिछले 8 महीने से इंदौर के इसी मूक बधिर केंद्र में रह रही है. यहां रहते हुए गीता वो सबकुछ कर रही है जो वो करना चाहती है. यहां उसे पढ़ाया जा रहा है, काम सिखाया जा रहा है. हर तरह से उसे खुश रखने की कोशिश की जा रही है लेकिन जिस खुशी की उम्मीद में वो सरहद पार से आयी थी वो उसे अभी तक नहीं मिली है. गीता खुद न बोल सकती है न सुन सकती है लेकिन इशारों की भाषा में भी वो खुशियां बांटने की कोशिश करती है.
इंदौर आने से पहले गीता ने अपनी जिंदगी के 13 साल कराची के संस्थान में गुजारे. इधी फाउंडेशन को चलाने वाली बिलकीस इधी बताती हैं कि जब 11 साल की उम्र में वो उनके पास आयी थी तब उन्हें न उसका नाम पता था न ये कि वो किस मुल्क की है. बिलकीस उसे फातिमा के नाम से बुलाती थीं लेकिन अचानक उन्हें लगा कि वो फातिमा नहीं हो सकती. कराची के इधी फाउंडेशन के ही फैजल बताते हैं कि वहां रहते हुए गीता की सिर्फ एक ही ख्वाहिश थी कि उसे जल्द से जल्द भारत लौटने का मौका मिले.
आखिरकार वो मौका आया, गीता की ख्वाहिश पूरी हुई. भारत के कई परिवारों ने दावा किया कि गीता उनकी बेटी है. गीता ने इशारों इशारों में जितनी जानकारी दी थी उसके आधार पर बिहार के सहरसा के रहने वाले महतो परिवार की फोटो गीता के पास भेजी गई, गीता ने तब उन्हें पहचानने की बात भी कही.
लेकिन भारत आने के बाद गीता जब महतो परिवार से मिली तो उसने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया. परिवार तब भी इस बात पर कायम रहा कि गीता उनकी बेटी है. उनके दावे की पुष्टि करवाने के लिए डीएनए टेस्ट हुआ लेकिन टेस्ट की रिपोर्ट से साफ हो गया कि गीता उनकी बेटी नहीं है.
हालांकि महतो परिवार अब भी अपने दावे पर कायम है. महतो की ही तरह उत्तर प्रदेश के टुंडा के रहने वाले एक परिवार ने भी गीता को अपनी बेटी बताया. बीते 8 महीनों में यूपी-बिहार समेत कई राज्यों के करीब 13 परिवारों ने ये दावा किया कि गीता उनकी बेटी है. कराची के ईधी फाउंडेशन के फैजल के मुताबिक ऐसे कई परिवार उनके भी संपर्क में हैं.
गीता के असली मां-बाप कौन हैं कहां हैं – इस बारे में अब तक कुछ भी पता नहीं चला है. गीता को उसके परिवार से मिलाने के जो वादे हुए थे वो बीते 8 महीनों में दम तोड़ते दिख रहे हैं. वो इंदौर के इस मूक बधिर केंद्र में कैद होकर रह गई है. इंदौर आने के बाद से वो एक बार भी शहर से बाहर नहीं गई. इंदौर कलेक्टर के आदेश के बिना कोई भी गीता से मिल नहीं सकता. बिना इजाजत के गीता भी किसी बाहरी व्यक्ति से नहीं मिल सकती. पुलिस का कहना है कि ये सब उसकी सुरक्षा के लिहाज से किया गया है.
लेकिन सवाल ये है कि गीता के माता पिता को ढूंढने की कोशिशें ढीली क्यों पड़ गई हैं. गीता की इस हालत पर पाकिस्तान के ईधी फाउंडेशन में उसके साथ 5 साल गुजारने वाली सहर भी दुखी है.
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