
तेल कीमतें बृहस्पतिवार को गिर कर 33 डॉलर प्रति बैरल के करीब आ गईं। अमेरिका में ऊर्जा का स्टॉक बढ़ने और चीन की मुद्रा कमजोर होने की वजह से कच्चे तेल में गिरावट का सिलसिला जारी रहा।
फरवरी डिलीवरी के लिए अमेरिकी मानक वेस्ट टैक्सेज इंटरमीडिएट (डब्लूटीआई) 60 सेंट गिरावट के साथ 33.37 डॉलर रहा। बुधवार को न्यू यार्क मर्केंटाइल एक्सचेंज पर डब्लूटीआई 33.97 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ था।
वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान दिसंबर 2008 के बाद डब्लूटीआई की यह सबसे कम कीमत थी। लंदन में यूरोपीय मानक ब्रेंट क्रूड फरवरी डिलीवरी के लिए 62 फीसदी की गिरावट के साथ 33.61 डॉलर पर बंद हुआ। यह बुधवार को 11 वर्ष के निचले स्तर 34.23 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ था। आखिरी बार जुलाई 2004 में ब्रेंट की कीमतें इतने नीचे गईं थीं।
आपको बताते चले कि वैश्विक स्तर पर पेट्रोल की कीमतें लगातार घटने के कारण सऊदी अरब का वित्तीय घाटा बढ़ता जा रहा है और उसने अपने यहां कच्चे तेल की कीमतों में 50 फीसदी तक की बढ़ोतरी कर दी है। वहीं भारत में कच्चे तेल की कीमतों में आने वाली कमी से सरकार को करोड़ो रूपए का फायदा हो रहा है।
सरकार लगातार पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर अपना खजाना बढ़ा रही है। उम्मीद है कि कच्चे तेल की कीमत इतनी ज्यादा गिरने के बाद इसका प्रत्यक्ष रूप से फायदा भारतीय जनता को भी मिलेगा। दो साल के अंदर कच्चे तेल की कीमतों में 81 डॉलर प्रति बैरल तक की गिरावट आ चुकी है। एक बैरल में 159 लीटर कच्चा तेल आता है।
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