नई दिल्ली : निर्देशक जयंत गिलातर की फिल्म ‘चाक एंड
डस्टर’ शुक्रवार को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई। यह फिल्म भारत की शिक्षा
व्यवस्था को कठघरे में खड़ा करती है लेकिन यह उतनी भी अलग नहीं बल्कि यह
भी उसी तरह की कई फिल्मों में से एक है जिसमें शिक्षा व्यवस्था के सच को
छात्रों के नजरिए से दिखाया गया है। फिल्म में मंझे हुए कलाकारों ने (शबाना
आजमी, जूही चावला, दिव्या दत्ता, गिरीश कर्नाड, रिचा चड्ढा, उपासना सिंह)
ने अभिनय किया है।
यह फिल्म इस नजरिए से खास है कि इसमें शिक्षकों की दुनिया
में झांकने का प्रयास किया गया है। उनके दृष्टिकोण से विसंगतियों को इसमें
दिखाया गया है। लेकिन विषयवस्तु के लिहाज से बेहतर होने के बावजूद यह एक
अभूतपूर्व फिल्म नहीं बन पाती। लचर पटकथा फिल्म को भटकाती है। ‘चाक एंड
डस्टर’ एक दुर्घटना के समान है जो खुद को ही बेड़ियों में बांधती जाती है
और काफी उपदेशात्मक हो जाती है। यह सवाल उठाती है और फिर उससे भाग जाती है।
तो शबाना आजमी, जूही चावला, गिरीश कर्नाड, दिव्या दत्ता और रिचा चड्ढा
जैसी शख्सियतों की मौजूदगी के बावजूद फिल्म कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाती।
‘चाक एंड डस्टर’ कहानी है एक स्कूल की जहां की निरंकुश प्रधानाध्यापिका
(दिव्या दत्ता) से शिक्षक वर्ग असंतुष्ट रहता है। कई घटनाओं के बाद दो
वरिष्ठ शिक्षिकाएं विद्या सावंत (शबाना) और ज्योति ठाकुर (जूही) मीडिया की
मदद से विद्रोही स्वर अपना लेती हैं।
यह फिल्म इस बारे में कोई गहन तथ्य पेश नहीं करती कि कैसे इस देश में
स्कूल लाभ की दुकान बन गए? इसी तरह के कई उतार चढ़ावों के साथ यह फिल्म आगे
बढ़ती है और लचर पटकथा के कारण फिल्म विषय पर अपनी पकड़ खोने लगती है। यही
कारण है कि फिल्म में दिग्गज कलाकार भी अपनी उपस्थिति का अहसास नहीं करा
पाते क्योंकि पटकथा में काफी झोल हैं।
इसीलिए ‘चाक एंड डस्टर’ ठीक से ब्लैकबोर्ड पर ना तो कुछ लिख पाती है और ना ही पुरानी इबारत को मिटा पाती है।
COMMENTS