नई दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लंबे समय से चली आ रही इन अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वह अंतरिम प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। प्रणब ने इन अटकलों को गलत और द्वेषपूर्ण करार दिया है। प्रणब ने यह भी कहा कि राजीव गांधी कैबिनेट से हटाए जाने पर वह ‘स्तब्ध और अचंभित’ रह गए थे।
उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा विमोचित मुखर्जी के संस्करण ‘द टर्बुलेंट इयर्स : 1980-96’ के दूसरे खण्ड में प्रणब ने लिखा है, ‘कई कहानियां फैलाई गई हैं कि मैं अंतरिम प्रधानमंत्री बनना चाहता था, मैंने दावेदारी जताई थी और फिर मुझे काफी समझाया-बुझाया गया था।’
राजीव गांधी का गलत निर्णय था , मंदिर का ताला खुलवाना
राष्ट्रपति ने लिखा है कि यह कहना बहुत आसान है कि सैन्य कार्रवाई टाली जा सकती थी। बहरहाल, कोई भी यह बात नहीं जानता कि कोई अन्य विकल्प प्रभावी साबित हुआ होता कि नहीं। उन्होंने लिखा है, ‘ऐसे फैसले उस वक्त के हालात के हिसाब से लिए जाते हैं। पंजाब में हालात असामान्य थे। अंधाधुंध कत्लों, आतंकवादी गतिविधियों के लिए धार्मिक स्थलों के गलत इस्तेमाल और भारतीय संघ को तोड़ने की सारी कोशिशों पर लगाम लगाने के लिए तत्काल कार्रवाई जरूरी थी।’
प्रणब ने लिखा है, ‘खुफिया अधिकारियों और थलसेना दोनों ने भरोसा जताया कि वे बगैर किसी खास मुश्किल के स्वर्ण मंदिर में मौजूद आतंकवादियों को मार गिराएंगे। किसी ने नहीं सोचा था कि प्रतिरोध की वजह से अभियान लंबा खिंचेगा।’ उन्होंने लिखा कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए सबक यह है कि बांटने वाली प्रवृतियों का प्रतिरोध किसी भी कीमत पर करना होगा। पंजाब के संकट ने बाहरी ताकतों को भारत के भीतर पनपी फूट का फायदा उठाने और अराजकता के बीज बोने का मौका दे दिया था। राष्ट्रपति ने लिखा है, ‘इसके जख्मों को भरने में लंबा वक्त लगा। आज भी समय-समय पर इक्का-दुक्का वारदातें हो जाती हैं।’
राजीव गांधी का गलत निर्णय था , मंदिर का ताला खुलवाना
राष्ट्रपति ने लिखा है कि यह कहना बहुत आसान है कि सैन्य कार्रवाई टाली जा सकती थी। बहरहाल, कोई भी यह बात नहीं जानता कि कोई अन्य विकल्प प्रभावी साबित हुआ होता कि नहीं। उन्होंने लिखा है, ‘ऐसे फैसले उस वक्त के हालात के हिसाब से लिए जाते हैं। पंजाब में हालात असामान्य थे। अंधाधुंध कत्लों, आतंकवादी गतिविधियों के लिए धार्मिक स्थलों के गलत इस्तेमाल और भारतीय संघ को तोड़ने की सारी कोशिशों पर लगाम लगाने के लिए तत्काल कार्रवाई जरूरी थी।’
प्रणब ने लिखा है, ‘खुफिया अधिकारियों और थलसेना दोनों ने भरोसा जताया कि वे बगैर किसी खास मुश्किल के स्वर्ण मंदिर में मौजूद आतंकवादियों को मार गिराएंगे। किसी ने नहीं सोचा था कि प्रतिरोध की वजह से अभियान लंबा खिंचेगा।’ उन्होंने लिखा कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए सबक यह है कि बांटने वाली प्रवृतियों का प्रतिरोध किसी भी कीमत पर करना होगा। पंजाब के संकट ने बाहरी ताकतों को भारत के भीतर पनपी फूट का फायदा उठाने और अराजकता के बीज बोने का मौका दे दिया था। राष्ट्रपति ने लिखा है, ‘इसके जख्मों को भरने में लंबा वक्त लगा। आज भी समय-समय पर इक्का-दुक्का वारदातें हो जाती हैं।’
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