मलिहाबाद जहरीली शराब दुखांतिका में 55 मौतें देख चुके दतली गांव में
अब कोई शराब का नाम भी नहीं लेता। एक साल पहले गांव के बीच जहां कच्ची
शराब बनाने की भट्ठी लगी थी, वहां आज सरसों की फसल लहलहा रही है। पीली
सरसों के बीच खाली जगह में बच्चे गुच्ची खेलते मिलते हैं।
पास-पड़ोस के गांवों से भले ही शराब बनने-मिलने की बात सुनने में आ जाए लेकिन दतली और उससे जुड़े खड़ता गांव के लोग अब और मौतें नहीं देखना चाहते, इसलिए उन्होंने शराब से तौबा कर ली है।
दूसरी तरफ वे परिवार जिन्होंने अपने घर के मुखिया से लेकर बेटों तक को जहरीली शराब दुखांतिका में खोया, वे जीवन को पटरी पर लाने के लिए नए सिरे से संघर्ष में जुट गए हैं। घर का खर्च चलाने के लिए बच्चे पढ़ाई छोड़कर छोटे-मोटे काम कर रहे हैं तो महिलाएं खेतों में मजदूरी।
परिवार की बुजुर्ग महिलाएं अपने जवान बेटों की मौत को भुला नहीं पाई हैं तो सुहाग खो चुकी बहुओं की सूनी आंखें अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता में भीगी हैं। परिवार में कमाने वाले सदस्य को खोने के बाद सरकार से मिली मदद भी खत्म होने लगी है। इस शराब दुखांतिका के एक साल पूरे होने पर रिपोर्टर अभिषेक यादव और फोटो जर्नलिस्ट रिमांशु सिंह ने इन परिवारों के हालात को समझा।
पास-पड़ोस के गांवों से भले ही शराब बनने-मिलने की बात सुनने में आ जाए लेकिन दतली और उससे जुड़े खड़ता गांव के लोग अब और मौतें नहीं देखना चाहते, इसलिए उन्होंने शराब से तौबा कर ली है।
दूसरी तरफ वे परिवार जिन्होंने अपने घर के मुखिया से लेकर बेटों तक को जहरीली शराब दुखांतिका में खोया, वे जीवन को पटरी पर लाने के लिए नए सिरे से संघर्ष में जुट गए हैं। घर का खर्च चलाने के लिए बच्चे पढ़ाई छोड़कर छोटे-मोटे काम कर रहे हैं तो महिलाएं खेतों में मजदूरी।
परिवार की बुजुर्ग महिलाएं अपने जवान बेटों की मौत को भुला नहीं पाई हैं तो सुहाग खो चुकी बहुओं की सूनी आंखें अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता में भीगी हैं। परिवार में कमाने वाले सदस्य को खोने के बाद सरकार से मिली मदद भी खत्म होने लगी है। इस शराब दुखांतिका के एक साल पूरे होने पर रिपोर्टर अभिषेक यादव और फोटो जर्नलिस्ट रिमांशु सिंह ने इन परिवारों के हालात को समझा।
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