तुम्हारी हिम्मत कैसे हो गई मेरे बेटे के साथ के खेलने की। तुम्हें नहीं पता कि तुम क्या हो और कहां से आते हो? पढ़-लिखकर ज्यादा से ज्यादा अपने पिता का काम करके थोड़ा पैसा कमा लोगो, तुम कितना भी पढ़ लोगे रहोगे तो रिक्शा ही चलाने वाले ही... ये कुछ ऐसे शब्द थे जिसे सुनकर-सुनकर गोविंद जयसवाल बड़े हुए थे। अपने लिए ऐसे शब्द सुनकर वह हमेशा यही सोचते थे कि कैसे वह ऐसा क्या करें कि लोग उनकी इज्जत करना शुरू कर दें। उन्होंने इज्जत पाने के लिए पढ़ाई को चुना क्योंकि वह जानते थे कि पढ़ाई के अलावा कोई भी दूसरी चीज उन्हें इन शब्दों से छुटकारा नहीं दिला सकती है।
अपने पहले ही प्रयास में गोविंद जयसवाल ने 2006 की आईएएस परीक्षा में 48 वां रैंक हासिल किया था। हिन्दी माध्यम से परीक्षा देने वालों की श्रेणी में वह टॉपर रहे थे। 32 साल के गोविंद फिलहाल नागालैंड के जुन्हेबोटो जिले में लैंड रेवेन्यू और डिजास्टर मैनेजमेंट ऑफिसर हैं। गोविंद जायसवल का जन्म 08 अगस्त 1983 को मंदिरों का शहर बनारस में हुआ था। गोविंद ने अपनी शुरुआती पढ़ाई बनारस के उस्मानपुर क्षेत्र के एक स्कूल से पूरी की। इसके बाद उन्होंने जौनपुर के वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय से बीएससी की पढ़ाई की। गोविन्द के घर के आसपास कई फैक्ट्रियां थीं। इन फैक्ट्रियों में चलने वाले जेनरेटरों की आवाज परिवारवालों को बहुत परेशान करती थी। तेज आवाजों से बचने के लिए गोविन्द कानों में रुई डालकर पढ़ाई करते थे।
गोविन्द के पिता नारायण जयसवाल पढ़े-लिखे नहीं हैं और बनारस में रिक्शा चलते थे। वह सही से सुन भी नहीं पाते हैं। रिक्शा ही उनकी कमाई का एक मात्र साधन था। रिक्शे के दम पर ही सारा घर-परिवार चलता था। गरीबी ऐसी थी कि परिवार के सारे पांचों सदस्य बस एक ही कमरे में रहते थे। पहनने के लिए ठीक कपड़े भी नहीं थे । गोविन्द की मां बचपन में गुजर गई थीं। तीन बहनें गोविन्द की देखभाल करती और पिता सारा दिन रिक्शा चलाते , फिर भी ज्यादा कुछ कमाई नहीं होती थी। बड़ी मुश्किल से दिन कटते थे। बड़ी-बड़ी मुश्किलें झेलकर पिता ने गोविन्द की पढ़ाई जारी रखी। चारों बच्चों की पढ़ाई और खर्चे के लिए पिता ने दिन-रात मेहनत की।
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