लंदन: रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने बुधवार को बैंक अधिकारियों को कड़ी चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि बैंक अधिकारियों के बार-बार भेड़िया आया, भेड़िया आया के रोना रोने से विश्वसनीयता कम हो सकती है। राजन ने वृद्धि को गति देने के लिये कड़े पूंजी नियंत्रण उपायों को आसान बनाने के लिये अपने मामले का समर्थन किया। बेबाक टिप्पणी के लिये चर्चित गवर्नर ने भारत में स्थिति की तुलना औद्योगिक देशों में लघु एवं मझोले उद्यमों से की और कहा कि दोनों परिदृश्य में तीव्र वृद्धि प्रमुख कारक है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष में मुख्य अर्थशास्त्री की भूमिका निभा चुके राजन ने कहा कि वित्तीय संकट के बाद के परिदृश्य में बैंक पर पूंजी रखने की मांग महंगी पड़ी है।
उन्होंने मार्शल व्याख्यानमाला 1015-16 के तहत ‘व्हाई बैंक’ विषय पर कल अपने संबोधन में कहा, ‘वित्तीय संकट के बाद के दौरान में बैंकों से ज्यादा पूंजी रखने के लिए कहने का तुक बनता था। लेकिन बैंक जो चिंता जाहिर करते रहे हैं उनमें से एक यह है कि भेड़िया आया, भेड़िया आया की आवाज बार बार निकालने के कारण यदि बैंकों की विश्वसनीयता काफी कम भी हो, उसमें अंतत: जोखिम भरा कर्ज देने से कतराने की इच्छा बढती ही है।’ राजन ने कहा, ‘कुछ आज उसकी कुछ बाते हमें दिखायी दे रही हैं। निश्चित तौर पर एक उभरते बाजार के केंद्रीय बैंक नियामक के तौर पर मैं देख रहा हूं कि विदेशी बैंकों ने हमारे यहां नयी शाखाएं खोलनी बंद कर दी हैं क्योंकि हमारी क्रेडिट रेटिंग बीएए है जिसका अर्थ है ‘अपेक्षाकृत अधिक जोखिम’। उस लिहाज से अंतरराष्ट्रीय बैंकों, जिन्हें भारत में निवेश करने के लिए कहा जा रहा है, उन्हें लगता है कि ऐसा करना ठीक नहीं है क्योंकि उन्हें बहुत सी पूंजी अलग रखनी पड़ेगी।’
भारत को विभिन्न वैश्विक एजेंसियों ने उच्च जोखिम की संभावना के साथ निवेश श्रेणी की न्यूनतम रेटिंग प्रदान की है। वृद्धि एवं पूंजी प्रवाह के बारे में बात करते हुए राजन ने कहा, ‘‘इसलिए हमें अपने-आप से पूछने की जरूरत है कि क्या ज्यादा पूंजी प्रावधान ठीक है या फिर यह बैंकों की गतिविधियों का अतिक्रमण है।..इसलिए अनुभवजन्य विचार की जरूरत है कि पूंजी का क्या सही स्तर है।’ शिकागो विश्वविद्यालय के बूथ स्कूल में वित्त विभाग से अवकाश पर चल रहे प्रोफेसर, राजन ने केंब्रिज विश्वद्यिालय द्वारा आयोजित दो दिन की व्याख्यान श्रृंखला में यह रेखांकित करने का प्रयास किया कि क्योंकि बैंकों को खत्म करना व्यावहारिक विकल्प नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘बैंकों का परिचालन क्यों होता है, इसकी वजह है। बैंकों को खत्म करने के ये प्रस्ताव, मेरे लिहजा से प्रणाली को गंभीर नुकसान करेंगे और इससे वित्त की लागत बढ़ेगी। इसलिए हमें सावधान रहना चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘हालांकि हम प्रणालीगत संकट के परिणाम को समझते हैं। वे गंभीर हैं और वे मुश्किलें हैं इसलिए वैश्विक वित्तीय संकट के दौर से अधिक पूंजी की जरूरत पड़ी लेकिन हमें इस दिशा में ज्यादा आगे बढ़ने के प्रति सावधान रहना चाहिए।’
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