नई दिल्ली। पिछले साल की तरह इस बार भी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर ओम के उच्चारण को लेकर विवाद छिड़ गया है। आयुष मंत्रालय की ओर से योग सत्र से पहले ओम का जाप किए जाने के फरमान ने खलबली मचा दी है। मंत्रालय की ओर से स्पष्टीकरण के बाद मामला शांत होता, उससे पहले ही यूजीसी के निर्देश ने विवाद को फिर हवा दे दी।
मंगलवार को आयुष मंत्रालय की ओर से फरमान जारी हुआ कि इस साल 21 जून को योग दिवस के मौके पर ओम और कुछ संस्कृत श्लोकों का जाप किया जाएगा। फरमान के जारी होते ही इस पर बयानों का सिलसिला शुरू हो गया। विवाद बढ़ते देख मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि ओम और श्लोकों का जाप अनिवार्य नहीं है। मंत्रालय के संयुक्त सचिव अनिल कुमार गनेरीवाला ने कहा कि जाप के दौरान कोई भी व्यक्ति चुप रहने के लिए स्वतंत्र होगा।
बाद में, यूजीसी ने सभी संबद्ध विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को निर्देश जारी किया कि आयुष मंत्रालय के फरमान का पूरी तरह पालन किया जाए। यूजीसी के इस निर्देश ने विवाद को फिर हवा दे दी। कांग्रेस ने फैसले को भाजपा की असंवेदनशीलता करार दिया। पार्टी प्रवक्ता पीसी चाको ने कहा कि योग प्राचीन भारत का ज्ञान है। यह भगवा पार्टी की धरोहर नहीं है। इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को स्वीकार्य व्यवस्था के तहत बढ़ाया जाना चाहिए।
जदयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कहा कि यह भारतीय जनता पर अपना सांप्रदायिक एजेंडा थोपने का एक और प्रयास है। हम इसका विरोध करते हैं। उन्होंने कहा, "मैं हिदू हूं और मुझे ओम कहने में कोई समस्या नहीं है, लेकिन आप अन्य धर्मावलंबियों को ऐसा करने के लिए कैसे कह सकते हैं। यह आरएसएस की विभाजनकारी नीति है। इसकी हम निंदा करते हैं।" राजद और माकपा ने भी इस फरमान की आलोचना की।
भाजपा के राष्ट्रीय सचिव श्रीकांत शर्मा ने कहा कि इस विवाद के पीछे कांग्रेस के लोगों की गंदी चाल है। उल्लेखनीय है कि पहली बार योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया था। तब ओम के उच्चारण को लेकर विवाद हुआ था, जिसके बाद सरकार ने इसकी अनिवार्यता खत्म कर दी थी।
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