केंद्रीय कर्मचारियों की सैलरी में 23 फीसदी तक के इजाफे को मोदी कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया. इस बड़े कदम को लेकर केंद्र सरकार भले अपनी पीठ थपथपा रही हो, लेकिन केंद्रीय कर्मचारियों की यूनियंस इसे अब तक का सबसे खराब वेतन आयोग बता रही है.
न्यूनतम वेतन 26 हजार रुपये करने की मांग
सभी केंद्रीय विभागों के कर्मचारियों को मिलाकर बने नेशनल जॉइंट काउंसिल ऑफ एक्शन के संयोजक शिवगोपाल मिश्रा कहते हैं कि इस वेतन आयोग के खिलाफ हमने पहले ही आपत्ति जाहिर की थी. इसके बावजूद सरकार ने बिना बदलाव के ही इसे लागू कर दिया है. इस वेतन आयोग में न्यूनतम वेतन 18 हजार रुपये करने की सिफारिश की गई है. जबकि इसे 26 हजार करने की जरूरत है.
14 फीसदी को 23 बताने के लिए जादूगरी
मिश्रा ने बताया कि तकनीकी रूप से सिर्फ 14 फीसदी बढ़ोतरी की गई है. सभी अलाउंस को जोड़ कर 23 फीसदी की जादूगरी की गई है. उन्होंने बताया कि 6ठे वेतन आयोग ने 52 और 5वें वेतन आयोग में 40 फीसदी की बढ़ोतरी की गई थी. उन्होंने कहा कि हमने नई पेंशन नीति को हटाकर पुरानी पेंशन नीति लागू करने और न्यूनतम वेतन 26 हजार करने की मांग की थी.
42 साल बाद सबसे बड़ी हड़ताल की चेतावनी
मिश्रा ने कहा कि हम इस वेतन आयोग की सिफारिश के खिलाफ आगामी 11 जुलाई से देशव्यापी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जा रहे हैं. इस हड़ताल में सभी केंद्रीय विभागों के सभी स्तर के 32 लाख से ज्यादा कर्मचारी भाग लेंगे. यह वर्ष 1974 के बाद पहली बार सबसे बड़ी हड़ताल होने जा रही है.
लोगों को परेशान करना नहीं चाहती यूनियंस
उन्होंने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि हमारी मांगें नहीं मानी गई तो देश की जनता की परेशानी के लिए सरकार खुद जिम्मेदार होगी. उन्होंने कहा कि 11 जुलाई से पहले सरकार यदि बातचीत कर बीच का रास्ता निकालना चाहती है तो हम तैयार हैं. क्योंकि लोगों को हम भी परेशान नहीं करना चाहते हैं.
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