कांग्रेस की दिग्गज नेता शीला दीक्षित ने गुरुवार को इन अटकलों के बीच पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की कि उन्हें उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया जा सकता है। कहा जा रहा है कि तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं वरिष्ठ नेता शीला को कांग्रेस आलाकमान ने संभवत: मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में उत्तर प्रदेश में अभियान की कमान संभालने का संकेत दिया है। इस बीच उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने कहा कि अगला चुनाव धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता के बीच लड़ाई के तौर पर लड़ा जाएगा।
समझा जा रहा है कि शीला दीक्षित ने इस बारे में मन बनाने के लिए समय मांगा है। कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उत्तर प्रदेश के चुनावों में कोई ब्राह्मण चेहरा सामने लाने के पक्ष में हैं और इसके लिए उन्होंने शीला का नाम सुझाया है। सूत्रों ने बताया कि सोनिया और राहुल से शीला की मुलाकात में उत्तर प्रदेश और पंजाब में विधानसभा चुनावों की तैयारियों पर चर्चा हुई।
जानकारों का मानना है कि कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक रहा ब्राह्मण समुदाय मंदिर-मंडल की राजनीति के उभरने के बाद भाजपा के पाले में चला गया था। इस बीच मायावती की बसपा को भी बड़ी संख्या में ब्राह्मणों के वोट मिलने लगे। मायावती ने इस समुदाय के कई उम्मीदवार पिछले चुनावों में उतारे थे। ब्राह्मण समुदाय का समर्थन मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर चुनावी नतीजे तय कर सकता है। शीला दीक्षित उत्तर प्रदेश के जानेमाने कांग्रेसी नेता रहे उमाशंकर दीक्षित की पुत्रवधू हैं। उमाशंकर लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री और राज्यपाल रहे थे।
कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपने खोये हुए आधार को हासिल करने में लगी है जहां 403 सदस्यीय विधानसभा में उसके महज 30 विधायक हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में उसके खाते में केवल दो सीटें आईं जो राहुल की अमेठी और सोनिया की रायबरेली सीट हैं। इस तरह की अटकलें भी थीं कि शीला दीक्षित को पंजाब में कांग्रेस का प्रभारी बनाया जा सकता है। पंजाब में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। कमलनाथ के प्रदेश प्रभारी का पद छोड़ने के बाद कांग्रेस को राज्य से नाता रखने वाले किसी नेता की तलाश है। शीला दीक्षित भी मूल रूप से पंजाब की हैं।
उधर, लखनऊ में प्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त प्रभारी व राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी को मजबूत करने को अपनी प्राथमिकता बताते हुए कहा कि अगला चुनाव धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता के बीच लड़ाई के तौर पर लड़ा जाएगा। चौथी बार उत्तर प्रदेश कांग्रेस का प्रभारी बनने के बाद पहली बार लखनऊ पहुंचे आजाद ने प्रदेश के वरिष्ठ पदाधिकारियों बैठक की। बाद में संवाददाताओं से बातचीत में उन्होंने उम्मीद जताई कि इस बार प्रदेश से कांग्रेस में नई जान आएगी। उन्होंने कहा कि पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करना उनकी पहली प्राथमिकता है।
आजाद ने कहा कि राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव में सिद्धांतों की लड़ाई होगी और धर्मनिरपेक्षता व सांप्रदायिकता के बीच सीधा मुकाबला होगा। प्रभारी के रूप में अपनी चौथी पारी में वे प्रदेश को सांप्रदायिकता की तरफ बढ़ता देख रहे हैं। कांग्रेस हमेशा से धर्मनिरपेक्षता की पैरोकार रही है और इसकी रक्षा में जो भी दल उसके सामने आएगा, वह उससे मुकाबला करेगी।
एक सवाल के जवाब में आजाद ने कहा कि पार्टी सही समय आने पर मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा करेगी। इस पद के लिए चेहरों की कमी नहीं है, मगर यह चयन जाति या धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि नेतृत्व और काबिलियत के आधार पर होगा। उन्होंने एक अन्य सवाल पर कहा कि राहुल गांधी किसी तय समय पर कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे, इसलिए उनका उत्तर प्रदेश में नेता बनने का सवाल नहीं है। प्रियंका पिछले 10 साल से अमेठी और रायबरेली में ही प्रचार कर रही हैं। उम्मीद है कि प्रियंका अब रायबरेली और अमेठी से निकल कर प्रदेश के बाकी हिस्सों में भी वक्त देंगी।
आजाद ने भाजपा पर कैराना और कांधला से हिंदू परिवारों के पलायन को जानबूझ कर सियासी मुद्दा बनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने हर मोर्चे पर अपनी नाकामी को छुपाने के लिए यह गलत रास्ता अपनाया है। इससे देश को नुकसान होगा। कांग्रेस धर्म के नाम पर लोगों को बंटने नहीं देगी। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में देश में सांप्रदायिकता बढ़ी है। संसद में पिछले तीन साल के दौरान इस मुद्दे पर तीन बार चर्चा होना इसका उदाहरण है। केंद्र के मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारी समाज में जहर फैलाने में लगे रहते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खामोश रहते हैं। जाहिर है कि यह सब सोची-समझी रणनीति है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल खत्री के बैठक में शरीक नहीं होने के बाद उनके इस्तीफे की अफवाहों के बारे में सफाई देते हुए आजाद ने कहा कि यह बैठक खत्री ने ही आयोजित करवायी थी। वे स्लिप डिस्क की समस्या से जूझ रहे हैं, इसलिए बैठक में शिरकत नहीं कर सके। उन्होंने साफ किया कि खत्री की जगह किसी और को प्रदेश कांगे्रस का अध्यक्ष नहीं बनाया गया है।
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