नई दिल्ली। 50 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप में सीबीआइ ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रमुख सचिव राजेंद्र कुमार को गिरफ्तार कर लिया है। सीबीआइ ने राजेंद्र कुमार के खिलाफ ठोस सुबूत मिलने का दावा किया है। पूछताछ के दौरान जांच एजेंसी के सवालों का जवाब नहीं देने के बाद प्रमुख सचिव समेत पांच लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। इनमें मुख्यमंत्री कार्यालय में उपसचिव तरुण शर्मा, घोटाले की साजिश में शामिल अशोक कुमार, संदीप कुमार और एंडेवर के दूसरे निदेशक दिनेश कुमार शामिल हैं।
इन्हें मंगलवार को अदालत में पेश कर सीबीआइ हिरासत में लेने का प्रयास करेगी। जांच एजेंसी ने पिछले साल दिसंबर में राजेंद्र कुमार के खिलाफ एफआइआर दर्ज की थी। गौरतलब है कि सीबीआइ ने राजेंद्र कुमार के खिलाफ कुल नौ करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाया था। लेकिन छह महीने की छानबीन के बाद जांच एजेंसी को राजेंद्र कुमार के खिलाफ 50 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले के सुबूत मिले हैं।
राजेंद्र कुमार की साजिश की शुरुआत 2006 में एंडेवर सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनने के साथ शुरू हुई। इसके बाद राजेंद्र कुमार जहां-जहां गए, एंडेवर सिस्टम पर उनकी मेहरबानी बरसती रही। सीबीआइ का मानना है कि परोक्ष रूप से इस कंपनी को राजेंद्र कुमार ही चलाते थे और इसके दोनों निदेशक सिर्फ दिखावे के लिए थे।
टेंडर की प्रक्रिया को किया दरकिनार
वर्ष 2007 में राजेंद्र कुमार के आइटी विभाग के सचिव बनने के बाद ही एंडवेर पर मेहरबानी सिलसिला शुरू हो गया। सबसे पहले आइटी विभाग में हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर खरीदने का ठेका आइसीएसआइएल नामक की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी को दी गई जिसे आगे एंडेवर को दे दिया गया।
इससे राजेंद्र कुमार ने ठेका देने के पहले टेंडर की प्रक्रिया का दरकिनार कर दिया। दिसंबर 2007 में राजेंद्र कुमार दिल्ली ट्रांस्को लिमिटेड के सीएमडी बन गए। यहां आते ही उन्होंने एंडेवर के एक निदेशक संदीप कुमार को सलाहकार नियुक्त कर दिया।
मजेदार बात यह है कि इसी संदीप कुमार से सलाह कर उनकी ही कंपनी एंडेवर को 46.16 लाख रुपये का ठेका दिला दिया। टेंडर से बचने के लिए यहां भी आइसीएसआइएल का सहारा लिया गया।
हैरानी की बात यह है कि दिल्ली ट्रांस्को लिमिटेड का यही काम सी-डैक नाम की सरकारी कंपनी मात्र 3.7 लाख रुपये में कर रही थी। सी-डैक सैप नाम सॉफ्टवेयर प्लेटफार्म पर काम कर रही थी। राजेंद्र कुमार ने अचानक नए सॉफ्टवेयर प्लेटफार्म की जरूरत बताते हुए एक नई कंपनी को 21 करोड़ रुपये का इसका ठेका दे दिया।
इस कंपनी ने बिना किसी बात के चार किस्तों में एंडेवर को 1.7 करोड़ रुपये दिए। सीबीआइ का संदेह है कि यह रकम रिश्वत के रूप में दी गई थी।
स्वास्थ्य विभाग में भी घपला
इसके बाद जुलाई 2010 में राजेंद्र कुमार स्वास्थ्य विभाग में आ गए। यहां उनके स्कूल के सहपाठी रहे अशोक कुमार ने राजेंद्र कुमार को निजी ईमेल पर स्वास्थ्य विभाग में आइटी के 16 नए पद सृजित करने का सलाह दिया। उन्होंने तत्काल इसे पूरा कर दिया और आइएससीआइएल को यह ठेका दे दिया।
आइएससीआइएल ने नए आइटी प्रोफेशनल की सैलरी में 10 फीसदी का कमीशन जोड़कर स्वास्थ्य विभाग को भेज दिया, जिसे मंजूर भी कर लिया गया। आशंका है कि यह 10 फीसदी रिश्वत की रकम हो सकती है।
यही नहीं, स्वास्थ्य विभाग में एक नए प्रोजेक्ट के लिए एक बार फिर संदीप कुमार को प्रोजेक्ट मैनेजर बनाकर लाया गया और उनकी कंपनी एंडेवर को 2.5 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। लेकिन इस कंपनी ने क्या काम किया, यह किसी को पता नहीं।
दो साल बाद 2012 में राजेंद्र कुमार ने दिल्ली के व्यापार व कर आयुक्त के रूप में फिर आइसीएसआइएल के मार्फत एंडेवर सिस्टम को 3.66 करोड़ रुपये का ठेका दे दिया। अगले साल 2013 में राजेंद्र कुमार दिल्ली के सूचना व प्रौद्योगिकी सचिव थे, यहां भी फैसिलिटी मैनेजमेंट सिस्टम प्रोजेक्ट का काम एंडेवर सिस्टम को ही मिला।
दिसंबर, 2013 में अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद राजेंद्र कुमार उनके सचिव बन गए। लेकिन एंडेवर सिस्टम पर उनकी मेहरबानी का सिलसिला जारी रहा। फरवरी, 2014 में केजरीवाल के इस्तीफे के पहले वे दिल्ली जल बोर्ड का 2.46 करोड़ रुपये का ठेका आइसीएसआइएल को दिलाने में सफल रहे, जो तीन महीने बाद एंडेवर सिस्टम को मिल गया।
राजेंद्र कुमार के खिलाफ आशीष जोशी ने की थी शिकायत
आप सरकार ने सुविधापूर्वक कामकाज चलाने के लिए दिल्ली डॉयलाग कमीशन (डीडीसी) का गठन किया। इसी कमीशन के पूर्व सदस्य सचिव आशीष जोशी ने गत वर्ष 15 जून को राजेंद्र कुमार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इसकी शिकायत एंटी करप्शन ब्रांच (एसीबी) से की थी।
जोशी का कहना था कि राजेंद्र ने शिक्षा और आइटी विभाग में अपने कार्यकाल के दौरान बेनामी कंपनियां बनाकर वित्तीय धांधली की है। जोशी ने शिकायत में लिखा, "दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डूसिब) में चीफ डिजिटाइजेशन ऑफिसर रहने के दौरान मुझे आइटी विभाग से जुड़े राजेंद्र कुमार की भ्रष्ट गतिविधियों का पता चला।
मुझे दिल्ली सरकार द्वारा डीओपीटी के वर्ष 2010 के आदेशों का उल्लंघन करते हुए अचानक पद से हटा दिया गया। बाद में मैंने राजेंद्र और अन्य लोगों के खिलाफ संसद मार्ग और आइपी एस्टेट पुलिस थाने में शिकायत भी दर्ज कराई थी।"
जोशी की शिकायत के मुताबिक, राजेंद्र कुमार 10 मई, 2002 से लेकर 10 फरवरी, 2005 तक निदेशक (शिक्षा) रहे। इस दौरान उन्होंने तिमारपुर में कंप्यूटर लैब बनाते हुए अशोक कुमार को इसका इंचार्ज नियुक्त किया। बाद में राजेंद्र ने दिनेश कुमार गुप्ता और संदीप कुमार के साथ मिलकर एंडीवर्स सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी बनाई।
गुप्ता शिक्षा विभाग को स्टेशनरी के सामान की सप्लाई करते थे। संदीप कुमार, अशोक कुमार से जुड़े हुए हैं। खास बात यह है कि अशोक ने वर्ष 2009 में सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। अशोक डीएएसएस कैडर से हैं और उन्होंने राजेंद्र के साथ लंबे समय तक काम किया हैं। वर्ष 2007 में राजेंद्र दिल्ली सरकार के आइटी सचिव बने।
कार्यकाल के दौरान उन्होंने एंडेवर प्राइवेट लिमिटेड के साथ कंपनी को एक पीएसयू यानी सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम के साथ इंपैनल करा लिया, जिससे कि उनकी कंपनी बिना किसी टेंडर के ही सरकारी विभागों के साथ डील कर सके।
आरोप है कि बिना टेंडर काम आवंटित किए जाने से दिल्ली सरकार को करोड़ों के राजस्व का नुकसान हुआ। जोशी ने मामले में राजेंद्र और अन्य लोगों और इसमें शामिल कंपनियों के गठजोड़ की जांच करने की मांग की थी।
ऐसे चली कार्रवाई
15 दिसंबर 2015
मुख्यमंत्री के दफ्तर में छापेमारी कर राजेंद्र कुमार के लैपटॉप समेत अन्य सामान जब्त किया गया था।
4 मार्च 2016
राजेंद्र कुमार के दफ्तर पर छापेमारी के मामले में दिल्ली सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें छापे में जब्त फाइलों को सीबीआइ के पास ही रहने के आदेश दिए गए थे। सरकार ने फाइलें वापस करने की मांग की थी।
2 मई 2016
पटियाला हाउस कोर्ट की विशेष सीबीआइ अदालत ने प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के दफ्तर में छापेमारी के दौरान जब्त किए गए लैपटॉप व आई-पैड को वापस लौटाने की याचिका को खारिज कर दिया था। न्यायाधीश अजय कुमार जैन ने कहा था कि यह सामान फिलहाल फोरेंसिक जांच के लिए हैदराबाद की लैब में भेजे गए हैं।
ऐसे में अभी इसे राजेंद्र कुमार को नहीं लौटाया जा सकता है। वह चाहें तो यह याचिका बाद में लगा सकते हैं, जिस पर विचार किया जाएगा। कुमार ने जब्त सामान लौटाने की मांग की थी।
49 दिन की सरकार के दौरान भी बनाए गए थे प्रधान सचिव
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार 1989 बैच के आइएएस अधिकारी हैं। केजरीवाल ने राजेंद्र कुमार को अपने 49 दिन के पहले कार्यकाल के दौरान भी प्रधान सचिव बनाया था। जूनियर होने के कारण कागजों में उनकी रैंक सचिव की है, लेकिन वह प्रधान सचिव का काम देख रहे हैं।
गत वर्ष केजरीवाल सरकार ने मुख्य सचिव अनिंदो मजूमदार के ऑफिस में ताला डालकर उसे सील कर दिया था और उपराज्यपाल नजीब जंग की अनदेखी करते हुए राजेंद्र कुमार को सचिव बनाया था। राजेंद्र दिल्ली सरकार में परिवहन और माध्यमिक शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग में रह चुके हैं। दिल्ली में ऊर्जा सचिव रहते हुए उन्होंने बिजली कंपनियों की मनमानी रोकने को लेकर कई कदम उठाए थे।
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