आप इसे अनुवाद का लोचा कह सकते हैं. इसकी वजह का भी नहीं पता है. लेकिन फेसबुक पर मौजूद ट्रांसलेशन टूल में अगर आप 'माद**द' शब्द लिखेंगे तो इसे ट्रांसलेट कर 'मुस्लिम' लिखता है. 'माद**द' शब्द भारत में एक भद्दी गाली के तौर पर इस्तेमाल होता है. लेकिन फेसबुक जैसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस तरह की गड़बड़ी क्यों हो रही है और फेसबुक की टीम अभी इस गड़बड़ी को पकड़ क्यों नहीं पाई, यह हैरानी करने वाली बात है. फेसबुक ऐसी सेवा है जिसका दुनियाभर में तरकीबन डेढ़ अरब लोग इस्तेमाल करते हैं.
इस शब्द को लेकर गड़बड़ी सबसे पहले इंडिया टुडे ग्रुप की वेबसाइट 'DailyO' ने नोटिस किया. यह वेबसाइट विचारों का मंच है.
फेसबुक ट्रांसलेट जैसे टूल्स का इस्तेमाल सीखने और डाटा की जांच के लिए किया जाता है कि वो पूरी तरह ठीक हैं. हालांकि इसमें इंसान का भी हाथ होता है. फेसबुक ने 2011 में ट्रांसलेशन का फीचर लॉन्च किया था लेकिन उसने यह नहीं बताया कि आखिर वो किस तरह काम करता है और गलती होने पर इसे किस तरह ठीक किया जाता है.
साल 2012 में फेसबुक की ओर से कहा गया था कि वो ट्रांसलेशन टूल के लिए दुनियाभर के वालंटियर्स की मदद लेता है. उस वक्त मीडिया में आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि एक लाख से ज्यादा यूजर्स ने फेसबुक ट्रांसलेशन एप्लिकेशन इंस्टॉल किया है और 10 हजार से अधिक लोगों ने अंग्रेजी के कंटेंट को तमाम यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद करने में फेसबुक की मदद की.
यह मुमकिन है कि फेसबुक अपनी वेबसाइट पर कंटेंट का अनुवाद करने के लिए अब भी उसी प्रक्रिया का इस्तेमाल कर रहा हो. और शायद इसी वजह से 'माद**द' को इंडिया में ट्रांसलेट कर 'मुस्लिम' दिखा रहा हो.
अगर वाकई फेसबुक अनुवाद जैसे गंभीर काम के लिए इस तरह वालंटियर की मदद लेती है तो यह वाकई हैरान करने वाली बात है. क्योंकि फेसबुक कंटेंट को लेकर बेहद गंभीर है. अगर कोई यूजर संवेदनशील कंटेंट पोस्ट करता है तो फेसबुक आमतौर पर उसे ब्लॉक या पोस्ट को डिलीट कर देता है. फेसबुक ने ऐसे कंटेंट के लिए तमाम स्तरों पर फिल्टर लगा रखे हैं.
यह और भी हैरानी वाली बात है कि फेसबुक इस तरह के अनुवाद को कैसे इजाजत दे सकता है जहां 'माद**द' की तुलना मुस्लिम से करता है. हमने फेसबुक से इस मसले पर बात की और जब उनका जवाब आएगा तो उसे अपडेट भी करेंगे.
दिलचस्प है कि सोशल मीडिया पर इस तरह का मसला पहली बार सामने नहीं आया है. इससे पहले गूगल मैप पर "anti-national" सर्च करने पर जेएनयू और हैदराबाद यूनिसर्सिटी जैसे विश्वविद्यालय दिखाई दिए हैं. गूगल के सूत्रों ने इस बारे में बताया कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वेबसाइट की दुनिया और मीडिया में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल इन विश्वविद्यालयों से जुड़ा हुआ था.
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