नयी दिल्ली: जीएसटी परिषद प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दरों पर यहां दो दिन चली बैठक में आमसहमति की ओर झुकाव के बावजूद फैसला नहीं कर सकी और इस पर निर्णय अगले महीने के लिए टाल दिया गया है। हालांकि, केंद्र और राज्य विलासिता की वस्तुओं तथा ‘अहितकर’ उत्पादों पर उच्चतम दर के साथ उस पर उपकर लगाने को लेकर सहमति की दिशा में बढ़ चुके हैं।
केंद्र और राज्यों के प्रतिनिधियों के महत्वपूर्ण निकाय जीएसटी परिषद की इस बैठक में दोहरे नियंत्रण को लेकर मतभेद उभर गए जबकि इन्हें पिछली बैठक में निपटा लिया गया था। राज्यों ने मांग की है कि 11 लाख सेवाकर दाताओं पर उनका नियंत्रण रहे, वहीं केंद्र ने सालाना 1.5 करोड़ रुपये की राजस्व सीमा के सभी डीलरों पर राज्यों के विशिष्ट नियंत्रण को समाप्त करने का प्रस्ताव किया।
जीएसटी में विलासिता और अहितकर वस्तुओं पर उच्चतम दर के साथ साथ उपकर लगाने का प्रस्ताव है। उपकर से मिलने वाले राजस्व का इस्तेमाल 1 अप्रैल, 2017 से पहले पांच साल के दौरान राज्यों को राजस्व-हानि की स्थिति में उसकी भरपाई के लिए किया जाएगा। इस उपकर के विरोध को लेकर लगभग सभी राज्यों में सहमति थी। विशेषज्ञों और उद्योग जगत ने उपकर के प्रस्ताव का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि इससे एक राष्ट्र, एक कर की धारणा समाप्त हो जाएगी।
जीएसटी परिषद की दो दिन की बैठक के आज संपन्न होने तक चार स्लैब के कर ढांचे 6, 12, 18 और 26 प्रतिशत पर अनौपचारिक सहमति बन बन गयी है। निचली दर आवश्यक वस्तुओं तथा उंची दर लक्जरी व तंबाकू, सिगरेट, शराब जैसे अहितकर उत्पादों के लिए होगी। हालांकि, इस पर फैसला अगली बैठक तक के लिए टाल दिया गया है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि जीएसटी परिषद की अगली बैठक 3-4 नवंबर को होगी जिसमें कर की दरों पर फैसला किया जाएगा। पहले जीएसटी परिषद की बैठक तीन दिन के लिए होनी थी। उन्होंने कहा कि स्लैब निचली होनी चाहिए इस पर विचार विमर्श अच्छा है। लेकिन यदि हम कर राजस्व की हानि होती है या स्लैब को निचले स्तर पर रखने के लिए काफी उंची कर दर लगाई जाती है तो यह उचित नहीं होगा। जीएसटी परिषद की बैठक पहले तीन दिन के लिए होनी थी। लेकिन दो दिन तक मैराथन विचार विमर्श के बाद यह बैठक संपन्न हो गई। राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने कहा कि जीएसटी परिषद कर स्लैब पर फैसला करेगी। उसके बाद अधिकारियों की समिति यह तय करेगी कि कौन की वस्तु किस स्लैब में फिट बैठती है।
अधिया ने कहा, ‘हम विचार विमर्श को 22 नवंबर तक संपन्न करने को लेकर आशान्वित हैं। हम अच्छी प्रगति कर रहे हैं। वित्त मंत्री चाहते तो वह मतदान का ‘आड़ा रास्ता’ अपना सकते थे। लेकिन वह राज्यों और केंद्र के बीच सहमति बनाने का प्रयास कर रहे हैं।’ यह पूछे जाने पर कि क्या दोहरे नियंत्रण पर नए सिरे से विचार का मतलब 1.5 करोड़ रुपये की तय की गई सीमा की समीक्षा करना है, जिस पर पहले ही फैसला हो चुका है, अधिया ने कहा कि इसे देखा जा रहा है। इस मुद्दे पर नए सिरे से विचार विमर्श हो रहा है। यह सीमा रहेगी या नहीं इस पर फैसला किया जाएगा।
वित्त मंत्री ने कहा कि ‘जीएसटी परिषद राज्यों को मुआवजे के लिए वित्तपोषण के स्रोत को लेकर सहमति की दिशा में आगे बढ़ चुकी है।’ कर ढांचे के बारे में उन्होंने कहा, ‘कर-स्लैब की संख्या (कर के स्तरों) को कम से कम रखना है तो हम कर कम या अधिक नहीं रख सकते।’ उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास शून्य कर दर वाले उत्पादों को तय करना और उन उत्पादों पर 6 प्रतिशत की दर लगाना है जिन पर अभी 3 से 9 प्रतिशत का कर लग रहा है। जेटली ने कहा, ‘हम कर ढांचे को अगली बैठक में अंतिम रूप देंगे।’ उन्होंने संकेत दिया कि इस समय दो मानक दरों- 12 प्रतिशत और 18 प्रतिशत, पर विचार विमर्श चल रहा है।
वित्त मंत्री ने बताया कि जीएसटी दरों पर तीन और चार नवंबर को फैसला होने के बाद जीएसटी परिषद की 9-10 नवंबर को दोबारा बैठक होगी जिसमें जीएसटी अधिनियम के मसौदे को अंतिम रूप दिया जाएगा। इसे स्पष्ट करते हुए अधिया ने कहा कि यदि उपकर नहीं लगाया जाता है और इसके बजाय अहितकर वस्तुओं पर कर की दर बढ़ाई जाती है, जैसा कि कुछ राज्यों ने सुझाव दिया है, तो जीएसटी में कर स्लैब की संख्या ज्यादा हो जाएगी। अधिया ने पूछा, क्या 26, 45 या 75 प्रतिशत की स्लैब हो सकती है? ऐसे उत्पाद हैं जिन पर फिलहाल प्रभावी कराधान 100 प्रतिशत से अधिक है। ऐसे में सवाल यह है कि जीएसटी में कराधान के अधिक संख्या में स्लैब रखना क्या व्यावहारिक होगा।
जीएसटी परिषद की 23 सितंबर को हुई पहली बैठक में फैसला किया गया था कि 1.5 करोड़ रुपये सालाना राजस्व की सीमा वाले सभी डीलरों पर राज्यों का नियंत्रण रहेगा। हालांकि, परिषद की 30 सितंबर की दूसरी बैठक में कुछ राज्यों ने पहली बैठक में 11 लाख सेवाकर दाताओं पर केंद्र के नियंत्रण के फैसले पर असहमति जताई थी। केरल के वित्त मंत्री टी एम थॉमस इसाक ने जीएसटी कर ढांचे पर सहमति न बनने की वजह बताते हुए कहा कि कुछ राज्यों का कहना था कि तंबाकू और स्वच्छ पर्यावरण उपकर ही मुआवजे के लिए उपलब्ध होगा। इसाक ने कहा कि यह 44,000 करोड़ रुपये बैठता है। ऐसे में आपको मुआवजा देने के लिए 7,000 करोड़ रुपये की और जरूरत होगी। ऐसे में यह फैसला किया गया है कि केंद्र उन उत्पादों को देखेगा जिन पर उपकर लगाया जाएगा।
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