श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर सरकार ने अपने दर्जन भर से अधिक कर्मचारियों को 'राष्ट्र विरोधी गतिविधियों' में लिप्त होने तथा घाटी में जारी अशांति को बढ़ावा देने के लिए बर्खास्त कर दिया है। बर्खास्तगी के बाद कर्मचारियों के समूह ने आंदोलन की धमकी दी है। एक शीर्ष अधिकारी ने गुरुवार को बताया कि कर्मचारियों की राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों पर रिपोर्ट राज्य पुलिस ने तैयार की, जिसे मुख्य सचिव के पास भेजा गया। उन्होंने संबंधित विभागों के प्रमुखों से इन कर्मचारियों को बर्खास्त करने को कहा।
बर्खास्त कर्मियों में कश्मीर विश्वविद्यालय के सहायक रजिस्ट्रार के अलावा शिक्षा, राजस्व, सार्वजनिक स्वास्थ्य, इंजीनियरिंग और खाद्य आपूर्ति विभाग के कर्मचारी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने राज्य के संविधान के अनुच्छेद 126 के तहत यह कार्रवाई की।
कुछ बर्खास्त कर्मचारियों को पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि कुछ अन्य के बारे में कहा गया है कि वे छिपे हुए हैं। अधिकारियों ने गिरफ्तार किए गए कुछ कर्मचारियों के खिलाफ कठोर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) लगाया है। इस अधिनियम के आधार पर पुलिस सार्वजनिक सुरक्षा को खतरे के शक में किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है। संदिग्ध को बिना कोई आरोप लगाए या बिना मुकदमा चलाए दो साल के लिए जेल भेजा सकता है।
कर्मचारियों की बर्खास्तगी पर कर्मचारियों की संयुक्त कार्रवाई समिति (ईजेएसी) ने गुस्सा जताते हुए धमकी दी है कि अगर सरकार ने अपने फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया, तो वे सड़क पर उतरेंगे। संघ के अध्यक्ष अब्दुल कयूम वानी ने कहा कि बर्खास्त कर्मचारियों की कुल संख्या 40 है।
वानी ने कहा कि वर्तमान सरकार दमन की सारी हदें लांघ चुकी है। बर्खास्त किए गए सभी कर्मचारी निचली श्रेणी के हैं और हम किसी भी कीमत पर उनके हितों का बचाव करेंगे। ईजेएसी इन कर्मचारियों को कानूनी सहायता प्रदान करेगी। उन्होंने कहा कि बर्खास्तगी आदेश कर्मचारी सुरक्षा कानूनों का उल्लंघन करता है। बिना पूरी कार्रवाई किए आप किसी कर्मचारी को कैसे बर्खास्त कर सकते हैं? यह उत्पीड़न है, उन कर्मचारियों को दबाने का एक कदम है, जो समाज के हिस्सा हैं।
कर्मचारियों को बर्खास्त करने का सरकार का यह कदम घाटी के कथित उपद्रवियों को कुचलने के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है। कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी के सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में आठ जुलाई को मारे जाने के अगले दिन नौ जुलाई से शुरू हुए उपद्रव व अशांति को 104 दिन हो गए हैं। इस दौरान 91 लोगों की मौत हो गई, जबकि 12,000 से अधिक लोग घायल हुए।
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