जीवन में किसी लक्ष्य का होना क्‍या आवश्‍यक है?

हमारे जीवन के दो पहलू हैं – एक हमारा शरीर और दूसरा हमारे भीतर का जीवन। एक शरीर के रूप में अपने पहचान बनाने से हमारी क्षमताएं कई सीमाओं में बंधी रहती हैं। लेकिन अगर हमारी पहचान जीवन के रूप में बन जाए तो हम क्षमता के एक अलग स्तर पर काम कर सकते हैं।

जीवन में किसी लक्ष्य का होना क्‍या आवश्‍यक है?

प्रश्न:- सद्‌गुरु, आप एक गुरु हैं और किसी भी व्यक्ति के भीतर झाँक सकते हैं और मुझे पूरा यकीन है कि आप मुझे भी भीतर से जान सकते हैं। अभी मैं अपने शरीर से जूझ रहा हूँ, मुझे बहुत सारी परेशानियों से जूझना पड़ रहा है पर आपने कहा कि लक्ष्य बहुत मायने रखता है। आप मेरे लिए क्या कर सकते हैं?

सद्‌गुरु:- आप यहां किसी लक्ष्य के साथ नहीं आए। आप अपने कष्ट के कारण आए हैं। दर्द से बाहर आने की इच्छा, कोई लक्ष्य की बात नहीं है। अगर आप इसका आनंद ले सकते तो आप मेरे पास न आते। अभी आपको उठना और बैठना भी बहादुरी का काम बना हुआ है। तो पहले आपको एक सार्थक लक्ष्य पैदा करना होगा।

इस जीवन को अपनी बुद्धि से देखिए, उन बातों के नजरिए से मत देखिए जिन्हें आप नहीं जानते, या जिन्हें मैंने कभी कहा या किसी और ने कहा, या किसी ने लिखा हो। अपने बोध और समझदारी से यह देखिए कि आप सबसे ऊँची चीज क्या चाहते हैं और अपना सब कुछ उसे पाने के लिए लगा दीजिए। वह जो भी हो, उसे थामे रखिए। तब मैं आपके लिए दूसरे तरह के काम करूँगा।

लक्ष्य जीवन को जीवंत बनाता है:-
एक लक्ष्य का मतलब है कि जीवन अब ठहरा हुआ नहीं है – यह कुछ चाहता है। लक्ष्य का मतलब है, कहीं जाने की चाह। यह किसी एक जगह पर ठहर नहीं सकता। आप क्या चाहते हैं इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। बस यह इतना उत्साही हो कि आपके जीवन को जीवंत बना सके। तब आपके साथ कुछ किया जा सकता है। अगर आप ठहरे हुए पानी की तरह हैं तो सबसे पहले आपको इसे बहता पानी बनाना होगा।

अस्तित्व में जो कुछ भी भौतिक है, वह चक्रीय है। ग्रह सूर्य के आसपास चक्कर लगा रहा है। ब्रह्माण्ड खुद घूम रहा है। हर किसी का आने और जाने का समय नियत है। यह सब चक्रीय है। भौतिकता का स्वभाव ही चक्रीय है। यह सब कुछ गोल-गोल घूमता है। अगर आप भी गोल-गोल घूम रहे हैं तो आप कहीं नहीं जा रहे।

जीवन में ऐसा क्या है – जिसे आप लक्ष्य मानते हैं:-
अगर आपको एहसास हो जाए कि आप केवल गोल चक्कर काट रहे हैं तो आपका सबसे पहला लक्ष्य यही होगा कि आप उससे बाहर निकलें। केवल तीन दिन लगा कर यह पता करें कि आपके जीवन में ऐसा क्या है जिसे पाने का आप दिल से लक्ष्य रखते हैं – फिर चाहे जो भी हो, उसके लिए अपना सब कुछ लगाकर जी-जान से जुट जाएँ। मान लेते हैं कि आप बस एक पहाड़ पर जाना चाहते हैं। तब आप अपना पूरा जीवन इसके पीछे लगा दीजिए। तब आपके लिए कुछ किया जा सकता है। लक्ष्य से भरा जीवन निश्चित तौर पर उत्साहपूर्ण होता है। एक बार यह उत्साहपूर्ण हो गया तो आप इतनी तरह से आगे जा सकते हैं कि आपने कभी सोचा भी नहीं होगा। अगर आप इसकी भौतिकता में ही उलझ गए तो यह गोलाकार दायरों में ही बंध कर रह जाएगा। और कोई तरीका ही नहीं है। ऐसा नहीं कि मेरे कहने से यह गोलाकार है। भौतिकता का स्वभाव ही यही है। हर अणु अपने-आप में चक्रीय हो कर घूम रहा है।

अणु से ले कर ब्रहमाण्ड तक सब कुछ चक्रीय है। जिसे आप भौतिकता कहते हैं, वह सिर्फ चक्रीय ही हो सकता है। उसी मामले में, ब्रह्मचर्य आदि दूसरे पहलू सामने आते हैं – ताकि आप खुद को भौतिकता से दूर ले जा सकें और आप जीते जी हमेशा एक तमाशा न बने रहें।

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