सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस आदेश में संशोधन किया है, जो उन्होंने पिछले हफ्ते सभी को मुफ्त में कोरोना टेस्ट प्राइवेट लैब में कराने को लेकर दिया था। सोमवार को दो जजों की बेंच जस्टिस अशोक भूषण और एस. रविन्द्र भट ने यह आदेश दिया कि जो लोग टेस्ट के लिए 4,500 रुपये नहीं चुका सकते हैं उन्हीं की प्राइवेट लैब में मुफ्त में जांच होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जो लोग आयुष्मान भारत योजना के तहत योग्य हैं उन्हें इस टेस्ट के लिए पैसे देने की जरूरत नहीं है। जजों ने केन्द्र सरकार से यह भी स्पष्ट करने को कहा है कि अन्य श्रेणी के कमजोर तबकों के बारे में नोटिफाई करें ताकि वे लोग बिना पैसे दिए प्राइवेट लैब में कोरोना का टेस्ट करा सकें।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के अलावा अन्य कम आय वर्ग की श्रेणी में आने वाले लोगों के बारे में सरकार विचार कर सकती है कि क्या उनकी मुफ्त कोविड-19 जांच की जाए और इस बारे में एक हफ्ते के अंदर गाइडलाइंस जारी करे।
इसके साथ ही, कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसे केस में मुफ्त जांच का वित्तीय बोझ प्राइवेट लैब नहीं उठा पाते हैं तो ऐसे लैब की तरफ से होने वाली मुफ्त जांच पर खर्च की सरकार भरपाई करने के लिए गाइडलाइंस के साथ आए।
इससे पहले, वकील शशांक देव शुद्धि की तरफ से दायर याचिका में यह कहा गया था कि सरकारी अस्पतलों में क्षमता से ज्यादा लोग पहले से ही है, ऐसी स्थिति में प्राइवेट लैब में जाने के लिए लोगों को मजबूर किया गया। इसके बाद 8 अप्रैल को कोर्ट ने सभी के लिए प्राइवेट लैब में मुफ्त कोरोना जांच कराने का आदेश दिया था।
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