आर.के. सिन्हा - इस बार की रमजान के दौरान फिजा बदली हुई रहने वाली है। मस्जिदों में गुजरें सालों की तरह रोजेदार नमाज पढ़ते हुए या अपने खुदा से दुआ मांगते हुए नहीं दिखेंगे। आपको मस्जिदों के अंदर-बाहर नमाज पढ़ने के बाद लोगों को गले मिलते हुए देखना भी नामुमकिन होगा। यह सब होगा जानलेवा कोरोना वायरस के कारण। इस भयानक महामारी ने पूरी मानव जाति पर ही संकट के बादल खड़े कर दिए हैं। इस महामारी की कोई वैक्सीन भी अभी तक उपलब्ध नहीं है। इसलिए कोरोना से लड़ने के लिए जरूरी है कि सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा जाए और मुंह पर मास्क पहना जाए। सोशल डिस्टेंसिंग का सीधा सा मतलब है कि नमाज सामूहिक रूप से न पढ़ी जाए। नमाज घरों में ही पढ़ ली जाए और किसी भी हालत में ईद पर भी गले न मिला जाये ।
अभी जारी है कोरोना से जंग
जाहिर है, सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा जाएगा तो मस्जिदों में नमाजी जुट नहीं सकेंगे। रोजेदारों को मगरिब की नमाज समाप्त करने के बाद मस्जिदों में बैठकर फल, खजूर खाने और पानी पीने का मौका नहीं मिलेगा। वजह कोरोना के कारण चल रहा लॉकडाउन है। अभी इस बात की कतई संभावना नहीं है कि सरकार धार्मिक और सार्वजनिक स्थलों पर लोगों के एकत्र होने की छूट देगी। कारण साफ है कि अभी कोरोना से जंग जीती नहीं गई है। अभी इससे लड़ना बाकी है। ये लड़ाई लंबी भी खींच सकती है। यह ठीक है कि लॉकडाउन के पहले जहाँ तीन दिनों में मरीजों की संख्या दुगनी हो जा रही थी, अब आठ दिन में दुगने हो रहे हैं । यह एक बड़ी सफलता है ।
कुरान हुई थी नाजिल
बेशक, ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि मुसलमानों को रमज़ान के महीने में भी मस्जिदों से दूर ही रहना होगा। पर इसी में उनकी भी और बाकी पूरे कौम की भी भलाई है। रमजान के महीने में मुसलमान 30 दिनों तक रोज़े रखते हैं। मुसलमानों के लिए ये सबसे पवित्र महीना समझा जाता है। मुसलमानों को यकीन है कि इसी महीने में 'कुरान शरीफ' नाज़िल हुई थी। यानी यह दुनिया को मिली थी। कहना न होगा कि इसलिए सब मुसलमान साल भर इस माह का इंतजार करते हैं। पर अभी की स्थिति भिन्न है। हालात कतई काबू में नहीं आए हैं। दुनियाभर में कोरोना महामारी के कारण लोग धड़ाधड़ मर रहे हैं। जितने ठीक हो रहे हैं उससे कहीं अधिक अस्पतालों में दाखिल भी हो रहे हैं। अब मुसलमानों के रहनुमाओं, उलेमाओं, बुद्धीजीवियों और अन्य खास लोगों को अपनी कौम का आहवान करना होगा कि वे घरों में ही रहकर नमाज अदा करे। कई समझदार मौलाना ऐसा कर भी रहे हैं । क्योंकि, ये ही वक्त की मांग है।
बेशक अल्लाह उनकी दुआओं को जरुर ही कूबुल करेगा। देश के एक दर्जन से अधिक मुस्लिम आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों ने भी देश के मुसलमानों से पुरजोर अपील की है कि वे वक्त की नजाकत को समझें। इनका यह भी कहना है कि कोरोना जैसी विनाशकारी महामारी के कारण ही दुनिया पर अभूतपूर्व संकट खड़ा हुआ है। हालात बहुत ही खराब हैं। सऊदी अरब में काबा के दरवाजे विगत दो माह से बंद हैं। फिलहाल मक्का भी खाली पड़ा है।
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