लॉकडाउन में घर और ऑफिस की टेंशन के साथ महिलाओं में नयी बीमारिया भी बढ़ रही है

कोरोना वायरस लॉकडाउन के इस समय महिलाओं पर कई तरह की मुसीबतें हैं। घर-परिवार, ऑफिस का टेंशन तो उन्हें मैनेज करना ही है, साथ ही महिलाओं की परेशानी बढ़ाने वाला उनका हार्मोन्स असंतुलन भी है। लॉकडाउन के इस तनाव भरे माहौल में मानसिक रूप से ही नहीं शारीरिक रूप से कई तरह से असर पड़ रहा है। इससे उनमें पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) के प्रति संवेदनशीलता भी बढ़ सकती है। 

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिन्ड्रोम वास्तव में एक मेटाबॉलिक, हार्मोनल और साइकोसोशल बीमारी है, जिसका प्रबंधन किया जा सकता है, लेकिन ध्यान नहीं दिए जाने से महिला के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। एक अध्यनन के मुताबिक, भारत में पांच में से एक वयस्क महिला और पांच में से दो किशोरियां पीसीओएस से पीड़ित हैं। 

एम्स की डॉ. वीके राजलक्ष्मी का कहना है कि पीसीओएस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें महिलाओं के सेक्स हार्मोन्स एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का संतुलन बिगड़ जाता है। यह सिंड्रोम महिला के मासिक धर्म, प्रजनन क्षमता, हृदय की कार्यप्रणाली और रूप-आकार को प्रभावित कर सकता है। इसके लक्षणों में मुंहासे, वजन बढ़ना या घटाने में परेशानी, चेहरे या शरीर पर अत्यधिक बाल, सिर के बाल झड़ना, मासिक धर्म में अनियमितता, प्रजनन क्षमता में परेशानियां, अवसाद है। इस स्थिति के लिए एक अस्वास्थ्यकर आहार पैटर्न और बैठे रहने वाला जीवन प्रमुख जोखिम कारक बन गए हैं। 
लॉकडाउन में घर और ऑफिस की टेंशन के साथ महिलाओं में नयी बीमारिया भी बढ़ रही है

पीसीओएस में इंसुलिन का स्तर भी सामान्य से अधिक स्तर तक बढ़ता है, जो वजन बढ़ने और अन्य मुद्दों का कारण बन सकता है। सही समय पर निदान न होने पर पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं को अन्य स्वास्थ्य जटिलताओं जैसे हाई बीपी, हाई कोलेस्ट्रॉल, चिंता और अवसाद, स्लीप एप्निया, दिल का दौरा, मधुमेह और एंडोमेट्रियल, डिम्बग्रंथि व स्तन कैंसर का जोखिम हो सकता है। 

पीसीओएस को रोका नहीं जा सकता, लेकिन समय पर निदान और उपचार हो जाने से लंबे समय तक होने वाली इन जटिलताओं से बचा जा सकता है। पीसीओएस का इलाज किया जा सकता है, लेकिन इसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है। इसके लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं। उसमें सबसे महत्वपूर्ण है स्वस्थ आहार का सेवन। चूंकि लॉकडाउन के कारण जंक फूड आसानी से उपलब्ध नहीं है तो महिलाओं को इस लॉकडाउन को एक अवसर की तरह देखना चाहिए, जिसमें वह हाई कैलोरी फूड से बचकर वजन कम कर पाएं और ओट्स, दलिया या पोहा जैसे आहार अपनाएं। 

लॉकडाउन महिलाओं को ऐसे आहार अपनाने में मदद कर सकता है, जिनमें अधिक सेल्यूलोज, विटामिन और मिनरल्स शामिल हैं। मासिक धर्म के चक्र को नियमित व्यायाम और डॉक्टर की सलाह पर हार्मोनल गोलियों की मदद से नियमित किया जा सकता है। हालांकि, तनाव का प्रबंधन महत्वपूर्ण है। इस लॉकडाउन में अपना समय उन चीजों में खर्च करें, जिसमें आनंद आता हो और तनाव को दूर कर सकता हो। योग और श्वास संबंधी व्यायाम मदद कर सकते हैं। 

भावनात्मक रूप से स्वस्थ रहना महत्वपूर्ण है। अपने रूटीन से काम करने और अतिरिक्त समय को वर्कआउट में बिताना चाहिए। मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता पैदा करना महिलाओं को मूड स्विंग्स से निपटने में मदद करने के लिए आवश्यक है। पीसीओएस किसी महिला के जीवन को झटके देने वाला हो सकता है, लेकिन जीवन शैली में बदलाव और अनुशासन के साथ खुद को इसके साथ रहना सिखा सकते हैं। 

डॉ. लक्ष्मीदत्ता शुक्ला का कहना है कि पीसीओएस की स्थिति के कारण ओवरी में छोटा अल्सर यानी सिस्ट बन जाता है और यह स्थिति घातक हो सकती है। यह सिस्ट छोटी-छोटी थैलीनुमा रचनाएं होती है जिनमें तरल पदार्थ भरा होता है। अंडाशय में सिस्ट जमा हो जाता है और उनका आकार भी धीर-धीरे बढ़ता जाता है। लॉकडाउन में घर पर रहते हुए कुछ घरेलू उपचार अपना सकते हैं। इसके लिए दालचीनी, अलसी, पुदीना की चाय, सेब का सिरका, मेथी, मछली का तेल, मुलेठी और तुलसी बड़े काम की हो सकती हैं।

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लॉकडाउन में घर और ऑफिस की टेंशन के साथ महिलाओं में नयी बीमारिया भी बढ़ रही है
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