नई दिल्ली। थायराइड आजकल आम बीमारी हो गई है। खासतौर पर महिलाए सबसे ज्यादा शिकार होती हैं। हर दस थायराइड मरीजों में से आठ महिलाएं ही होती हैं। आमतौर पर शुरुआती दौर में थायराइड के किसी भी लक्षण का पता आसानी से नही चल पाता और जब तक इसे गंभीरता से लिया जाता है, तब तक यह भयानक रूप ले लेता है। इसलिए थायराइड के प्रारंभिक लक्षणों के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
थायरायड ग्रंथि गर्दन में श्वास नली के ऊपर एवं स्वर यंत्र के दोनों ओर दो भागों में बनी होती है। इसका आकार तितली जैसा होता है। थायराइड ग्रंथि थाइराक्सिन नामक हार्मोन बनाती है, जिससे शरीर के ऊर्जा क्षय, प्रोटीन उत्पादन एवं अन्य हार्मोन के प्रति होने वाली संवेदनशीलता नियंत्रित होती है।
थायरायड का सबसे ज्यादा असर वजन वजन पड़ता है। आदमी को जल्द थकान होने लगती है। उसका शरीर सुस्त रहता है और शरीर की ऊर्जा समाप्त होने लगती है। थायराइड की समस्या होने पर आदमी हमेशा डिप्रेशन में रहने लगता है। उसका किसी भी काम में मन नहीं लगता है, दिमाग की सोचने और समझने की शक्ति कमजोर हो जाती है। यहां तक की याद्दाश्त भी कमजोर हो जाती है। मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और साथ ही साथ कमजोरी का होना भी थायराइड की समस्या के लक्षण हो सकते हैं।
योग से दूर हो सकता है थायरायड
योग से शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक कायाकल्प प्राचीन पद्धति का तरीका है। योग के विभिन्न आसन थायराइड पर नियंत्रण पाने के लिए सहायक सिद्ध हो सकते हैं। इसके लिए नियमित योगाभ्यास की जरूरत होती है। जानें कौन-कौन से आसन करके थायराइड को दूर भगाया जा सकता है।
मत्स्यासन और हलासन
मत्स्यासन में पीठ के बल सीधा जमीन पर लेट जाएं और अपने पैरों को आपस में जोड़ लें। अब दोनों हाथों को गर्दन की पास रखें और हथेलियों का सहारा लेते हुए गर्दन को उठाने का प्रयास करें। अब दोनों हाथों को जांघ पर रखें। वापस आते समय दोनों हथेलियों के सहारे गर्दन को दोबारा उसी स्थिति में वापस ले आएं। हलासन में पीठ के बल लेट कर अपने पैरों को मिला लें। अब धीरे-धीरे दोनों पैरों को एक साथ ऊपर उठाएं और पैरों को 30, 60 और 90 डिग्री के कोण पर लाकर रोकें। अब दोनों हाथों पर जोर देकर पैरों को सिर की ओर थोड़ा सा झुकाएं। जब पैर जमीन को स्पर्श करने लगे, तो दोनों हथेलियों को क्रॉस करके बांधे और सिर पर रखें।
धनुरासन
सबसे पहले मैट बिछाकर पेट के बल लेट जाएं, श्वास को छोड़ते हुए दोनों घुटनों को एक साथ मोड़ें, एड़ियों को पीठ की ओर बढ़ाएं और अपनी बांहों को पीछे की ओर ताने फिर बाएं हाथ से बाएं टखने को एवं दायें हाथ से दायें टखने को पकड़ लें। अब श्वास भरकर उसे रोके रखें, अब सांसों को पूरी तरह निकाल दें और जमीन से घुटनों को उठाते हुए दोनों पैर ऊपर की ओर खींचें और उसी समय जमीन पर से सीने को उठाएं। बांह और हाथ झुके हुए धनुष के समान शरीर को तानने में प्रत्यंचा के समान कार्य करते हैं।
अब अपने सिर को ऊपर की ओर उठाएं और पीछे की ओर ले जाएं । अब घुटनों और टखनों को सटा लें। इस दौरान श्वास की गति तेज होगी, लेकिन इसकी चिंता न करते हुए 15 सेकंड से 1 मिनट तक रुकें और आगे- पीछे, दाएं -बाएं शरीर को हिला डुला सकते हैं। अब श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे टखनों को भी छोड़ दें और दोनों पैरों को सीधी कर लें।
यह ध्यान रहे कि पहले घुटनों को जमीन पर रखें फिर तुड्डी को जमीन स्पर्श कराएं और इसके बाद पैरों को छोड़ते हुए उन्हें जमीन तक धीरे धीरे आने दें। अपने कपोल को जमीन पर रखकर विश्राम करें। यह अभ्यास 5 सेकेंड से शुरु करें और प्रतिदिन समय को तब तक बढ़ाते रहें जब तक बिना किसी दबाव के 15 से 30 सेकेंड तक न हो जाये।
प्राणायाम
सबसे पहले आराम की मुद्रा में जमीन पर पीठ के बल लेट जाएं। फिर हथेलियों को पेट पर हल्के से रखें। दोनों हाथों की मध्यमा अंगुली नाभि पर एक दूसरे को स्पर्श करता रहे। फिर धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए पेट को भी ढीला छोड़ दें। अब श्वास खींचते हुए पेट को फुलाइए।इस क्रिया को 5 मिनट तक बार-बार दोहराएं। क्रिया करते वक्त श्वास को पहले छाती में, फिर पसलियों में और फिर पेट में महसूस करना चाहिए। इस प्राणायाम क्रिया को बहुत ही आराम से करें। इस प्राणायाम को करते समय पेट की गति अर्थात संकुचन, छाती और मांसपेशियों पर ध्यान रखना चाहिए। जब आप श्वास लेते हैं तो आपके दोनों कंघे ऊपर आते हैं और श्वास छोड़ते हुए नीचे की ओर जाते हैं तो कंधों में भी श्वसन की लय को महसूस करें।
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