पिछले पांच वर्षों में आईआईटी-मद्रास ने 168 और आईआईटी-बंगलुरू ने 96 प्रोफेसरों को देश के बाहर के संस्थानों से नियुक्त किया है.
डॉक्टर अरविंद पेराथुर न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी के अलबैनी मेडिकल केन्द्र में कार्यरत एक सफल फिजिशियन हैं. वे बीते माह वापस इंडिया लौटे हैं ताकि कोच्चि के अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में फैकल्टी के तौर पर ज्वाइन कर सकें.
अरविंद की तरह ही ऐसे कई एकेडमिक और प्रोफेशनल शख्सियतें हैं जो देश के विभिन्न प्रीमियर संस्थानों में फैकल्टी बन कर लौट रहे/रही हैं. देश के भीतर व्याप्त भारी प्रतिस्पर्धा और योग्यता के चलते देश में ऐसे लोगों को खोजना मुश्किल हो गया है. इसके मद्देनजर वे अब देश से बाहर का रुख करने लगे हैं.
अपने देश लौटने के एक्सपिरिएंस पर अरविंद कहते हैं कि तमाम भौतिकवादी चीजें पाने के बावजूद भी आप चाहते हैं कि कुछ छूट गया है. इसके लिए वे किसी ऐसी जगह की तलाश में थे जो उन्हें सुकून दे सके. उन्होंने वापस लौटने के फैसला किया और आज वे अपने इस फैसले पर खुश हैं.
जनता के पैसों से चलने वाले IIT और दूसरे संस्थान बाहर से फैकल्टी को हायर कर रहे हैं. वे इसके लिए न्यूजपेपर, मैगजीन में इश्तेहार देने के साथ-साथ अपने एल्युमनी नेटवर्क का भी सहारा लेते हैं.
आआआईटी-मद्रास में डीन ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन पी श्रीराम कहते हैं कि वे दुनिया के अच्छे विश्वविद्यालयों में फैकल्टी की तलाश करते हैं. इसमें आईआईटी का मजबूत अलमुनी नेटवर्क खासा मददगार होता है.
सैलरी के मामले में अधिकांश संस्थान यूजीसी के तयशुदा मानकों के हिसाब से पैसे देते हैं. कई डीम्ड यूनिवर्सिटी पे पैरिटी रूल को फॉलो करते हैं. जैसे कि यदि वे अमरीका से किसी फैकल्टी को हायर करते हैं तो उनकी सैलरी और लिविंग स्टैन्डर्ड को कम्पेयर करते हैं. तब उन्हें प्रतिभा और भारत के हिसाब से पे करते हैं.
SASTRA University के प्लानिंग एंड मैनेजमेंट के डीन एस वैद्यासुब्रामनियम ने बताया कि इसके लिए यूनिवर्सिटी ने स्पेशल पोस्ट (असिस्टेंट प्रोफेसर- रिसर्च) का सृजन किया है. वे इंट्री लेवल असिस्टेंट प्रोफेसर की तुलना में अधिक पैसे देते हैं. हालांकि वे ऐसे कैंडिडेट को कम क्लासेस देते हैं ताकि वे उनके रिसर्च को भी जारी रख सकें.
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