डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला करने और अस्पताल या स्वास्थ्य उपकरणों को नुकसान पहुंचाने वालों से अदालत भी सख्ती से निपटेगी। विभाग की शिकायत पर ही कोर्ट यह अवधारणा कर लेगी कि हमलावर दोषी हैं। महामारी संशोधन अध्यादेश, 2020 की धारा 3 डी (1) में स्पष्ट लिखा है कि कोर्ट उसे आपराधिक वृत्ति (कल्पेबल मेंटल स्टेट) से किया गया कृत्य मान लेगी, जब तक कि दोषी ये तथ्य सिद्ध न कर सके कि उसने इरादतन ऐसा नहीं किया है। यानी हमलावरों को बचाव करने की जिम्मेदारी खुद की होगी। इसमें आपराधिक न्याय शास्त्र का सिद्धांत लागू नहीं होगा कि अभियुक्त तब तक निर्दोष है, जब तक अभियोजन या पुलिस दोषी साबित न कर दे।
अध्यादेश में इसका अर्थ बताया गया है- इरादा, उद्देश्य और तथ्यों का अभिज्ञान कि वो क्या कर रहा है और उसका यह विश्वास कि उसके कृत्य से संपत्ति का नुकसान या इंसान को चोट पहुंच रही है। आपराधिक कानून विशेषज्ञ डॉ. एचपी शर्मा के अनुसार, कानून में यह प्रावधान बहुत जरूरी था, क्योंकि डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मी जो जान जोखिम में डाल महामारी के मरीजों को स्वस्थ कर रहे हैं, उन्हें सबूत देने को कोर्ट बुलाना उचित नहीं हो सकता।
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