अब लग रहा है कि तबलीगी जमात की मानवता और देश विरोधी हरकतों पर काबू पाने के लिए विभिन्न राज्यों की पुलिस ने जिस तत्परता से कार्रवाई की वह गलत थी। उन्हें तो उन्हीं के आकाओं की नसीहत के अनुरूप मस्जिदों और तंग गलियों में मरने और दूसरों को मारने के लिए छोड़ देना ही उचित था । सरकारी कार्रवाई की प्रशंसा करने के बजाय देश के गुजरे जमाने के 101 पूर्व आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों ने परोक्ष रूप से मीनमेख निकाल कर सरकार की आलोचना शुरू कर दी है । अब ये खुलकर कहने लगे है कि तबलीगी जमात पर एक्शन लेने के बाद देश में मुसलमानों के खिलाफ वातावरण विषाक्त हुआ है।
दरअसल मोटी पेंशन पा रहे इन पूर्व अफसरों ने देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उप राज्यपालों को पत्र लिखकर कहा है कि मुसलमानों के साथ भेदभाव के मामले बढ़े हैं। तो जरा इनसे कोई पूछे कि कानून का उल्लंघन करने वाले क्या तलबीगी जमात पर एक्शन नहीं लिया जाना चाहिए था? क्या तबलीगी जमात का मुखिया मौलाना मोहम्मद साद दिल्ली के निजामउद्दीन इलाके में अपने हजारों चेलों के साथ कोरोना महामारी फैलने के बाद सरकारी आदेशों की अनदेखी कर के कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुये सम्मेलन करके सही कर रहा था? क्या इन नौकरशाहों को महामारी कानून के उल्लंघन में क्या सलूक किया जाना चाहिये, यह पता नहीं है क्या ? लानत है ऐसे नासमझ नौकरशाहों पर ।
जिन अफसरों के पत्र में हस्ताक्षर हैं उनमें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष वजाहत हबीबउल्ला, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, मोदी सरकार की निंदा करने का कोई भी मौका नहीं गंवाने वाले हर्ष मंदर, महाराष्ट्र और पंजाब पुलिस के पूर्व महानिदेशक जूलियस रिबेरो, पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन, पुरस्कार वापसी गैंग के प्रमुख सदस्य डा. अशोक वाजपेयी, अमिताभ पांडे और प्रसार भारती के पूर्व चेयरमेन और माक्सिस्ट विचारों पर प्रसार भारती को ले जाने के लिए कुख्यात जवाहर सरकार शामिल हैं।
साधुओं की हत्या पर चुप रहने वाले:- ये सब महाराष्ट्र में साधुओं की नृशंस हत्या से तो कत्तई मर्माहत नहीं हुए। इन्होंने तब महाराष्ट्र सरकार से कोई सवाल नहीं पूछा। सवाल जूलियस रिबेरो ने भी नहीं पूछा। आखिर उन्हीं के राज्य में दो साधुओं को भीड़ पीट-पीटकर कर नृशंसतापूर्वक मार देती है। पर मजाल है कि रिबेरो या कोई अन्य अफसर बोला भी हो। अपने को मानवाधिकारवादी कहने वाले हर्ष मंदर की भी जुबान सिली ही रही। वे भी साधुओं के कत्ल पर एक शब्द नहीं बोले। अमिताभ पांडे या जवाहर सरकार के संबंध में टिप्पणी करने का कोई मतलब ही नहीं है।
ये अपनी फेसबुक वॉल पर मोदी सरकार की बार-बार निंदा करते ही रहते हैं। यहां पर सवाल निंदा या प्रशंसा करने का नहीं है। सवाल तो ये है कि क्या आप सच के साथ खड़े हैं? क्या आप देश के साथ खड़े हैं? अगर ये बात होती तो इन बाबुओं के पत्र पर किसी को कोई एतराज क्यों होता। इनके पत्र पर एतराज का कारण यही है कि ये सरकार को तब भी बदनाम करने की चेष्टा कर रहे हैं जब पूरी दुनिया वैश्विक महामारी से लड़ रही है। संकट गहरा रहा है। अभी तक कोरोना वायरस से लड़ाई जीतने की कोई उम्मीद भी सामने नहीं आ रही है। सारी दुनिया में कोरोना के कारण मौतें थमने का नाम ही नहीं ले रही हैं।
यदि उपर्युक्त सरकारी बाबुओं को सरकार के कदमों और फैसलों से इतनी ही शिकायत है तो ये सरकारी पेंशन विरोध में लेना छोड़ क्यों नहीं देते। इस तरह का कोई भी कदम उठाकर ये एक उदाहरण पेश करेंगे और अपनी धूल में मिली हुई साख को कुछ हदतक बचा भी लेंगे। सरकार को भी चाहिए कि महामारी में भ्रामक प्रचार करने के लिए और राष्ट्रद्रोही हरकत के लिये इनपर सख्त कानूनी कारवाई की जाय ।
COMMENTS