पिता जी! मेरा दफ़्तर ख़ासा दूर पड़ जाता है लिहाज़ा मैं ऑफ़िस के पास एक कमरा लेने का विचार कर रहा हूं. लेकिन मैं वीकेंड पर घर आता-जाता रहूंगा.
भारत के अलग-अलग हिस्सों में परिवार की बनावट और इसके आकार में हमें बहुत विविधताएं देखने को मिलती हैं. किसी भी परिवार के वर्गीकरण की सबसे महत्वपूर्ण कसौटी होती है, शादी का तरीक़ा और परिवार में लोगों के अधिकार.
भारत की आज़ादी के बाद से अब तक अलग-अलग राज्यों में परिवार की सरंचना में विविधताएं दिखती हैं.
हिमालय की तराई के जौनसर बावर इलाक़े में यानी देहरादून से लेकर लद्दाख तक हमें तरह-तरह की पारिवारिक संरचनाएं दिखती हैं. इस इलाक़े में एक स्त्री और एक पुरुष के वैवाहिक संबंध (मोनोगैमी) वाले परिवार, बहुपत्नी प्रथा (पॉलीगेमी) और बहुपति प्रथा (पोलिएंड्री) आम थे. हालांकि अब इनकी तादाद कम हो रही है और अब यहां समाज के ज़्यादातर तबक़ों में मोनोगैमी ही आम है.
वहीं पूर्वोत्तर राज्य मेघालय के गारो और खासी समुदाय में मातृसत्तात्मक परिवार देखने को मिलते हैं. इन समुदायों में पारिवारिक संपत्ति मां से बेटी को विरासत में मिलती है और पति अपनी पत्नियों के घर में रहते हैं.
इसी तरह, दक्षिणी राज्य केरल के नायर समुदाय में भी कुछ हद तक महिलाओं को परिवार में ज़्यादा अधिकार हासिल होते हैं. ये भी एक हक़ीक़त है कि महिलाओं की अगुवाई वाले इन समुदायों में परिवार का मुखिया के तौर पर पुरुष के होने का चलन बढ़ रहा है.
देश के बहुत से हिस्सों में संयुक्त परिवारों का चलन है. जिन्हें, आम तौर पर हिंदू संयुक्त परिवार कहा जाता है. हिंदुओं की ज़्यादातर आबादी के बीच हम ऐसे ही ख़ानदान देखते हैं. हालांकि, मुस्लिम, सिख और अन्य समुदायों के बीच भी बड़े और संयुक्त कुनबे देखने को मिलते हैं.
भले ही इनकी बनावट या रंग-रूप अलग हों. ख़ास तौर से खेती-बाड़ी करने वाले समुदायों के बीच बड़े और संयुक्त परिवारों का चलन आम है ताकि सब लोग मिल-जुलकर काम करें.
कहानी का अगला भाग पढ़ने के लिए अगले पोस्ट का करे इंतज़ार। (मोनार्क टाइम्स )
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