लखनऊ। इस्लाम धर्म में अच्छा इंसान बनने के लिए पहले मुसलमान बनना आवश्यक है और मुसलमान बनने के लिए बुनियादी पांच कर्तव्यों का अमल में लाना आवश्यक है। पहला ईमान, दूसरा नमाज, तीसरा रोजा, चौथा हज और पांचवा जकात। इस्लाम के ये पांचों कर्तव्य इंसान से प्रेम, सहानुभूति, सहायता तथा हमदर्दी की प्रेरणा देते हैं। रोजे को अरबी में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना।
रोजा यानि तमाम बुराइयों से परहेज करना। रोजे में दिन भर भूखा व प्यासा ही रहा जाता है। इसी तरह यदि किसी जगह लोग किसी की बुराई कर रहे हैं तो रोजेदार के लिए ऐसे स्थान पर खड़ा होना मना है। जब मुसलमान रोजा रखता है, उसके हृदय में भूखे व्यक्ति के लिए हमदर्दी पैदा होती है। रमजान में पुण्य के कामों का सबाव सत्तर गुना बढ़ा दिया जाता है। जकात इसी महीने में अदा की जाती है।
रोजा झूठ, हिंसा, बुराई, रिश्वत तथा अन्य तमाम गलत कामों से बचने की प्रेरणा देता है। कुरआन में अल्लाह ने फरमाया कि रोजा तु हारे ऊपर इसलिए फर्ज किया है, ताकि तुम खुदा से डरने वाले बनो और खुदा से डरने का मतलब यह है कि इंसान अपने अंदर विनम्रता तथा कोमलता पैदा करें?
माह-ए-रमजान रहमतों और बरकतों का महीना
खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना माह-ए-रमजान न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का वक्फ है बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है। मौजूदा हालात में रमजान का संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है। इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाता है और भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं। इस माह में दोजख़ (नरक) के दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं और जन्नत की राह खुल जाती है।
अच्छी जिंदगी जीने का नाम रोजा
रोजा अच्छी जिंदगी जीने का प्रशिक्षण है। जिसमें इबादत कर खुदा की राह पर चलने वाले इंसान का ज़मीर रोज़ेदार को एक नेक इंसान के व्यक्तित्व के लिये जरूरी हर बात की तरबियत देता है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया की कहानी भूख, प्यास और इंसानी वाहिशों के गिर्द घूमती है और रोजा इन तीनों चीजों पर नियंत्रण रखने की साधना है। रमजान का महीना तमाम इंसानों के दुख-दर्द और भूख-प्यास को समझने का महीना है ताकि रोजेदारों में भले-बुरे को समझने की सलाहियत पैदा हो। बुराई से घिरी इस दुनिया में रमजाऩ का संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है। हर तरफ झूठ, मक्कारी, अश्लीलता और यौनाचार का बोलबाला हो चुका है, ऐसे में मानव जाति को संयम और आत्मनियंत्रण का संदेश देने वाले रोजे का महत्व और भी बढ़ गया है।
इस्लामिक कैलेंडर का नौंवा महीना है रमजान
इस्लामिक कैलेंडर का नौंवा महीना रमजान का होता है। इस्लाम में रमजान के महीने को सबसे पाक महीना माना जाता है क्योंकि इसी महीने में कुरान उतरा (अवतरित) था। साल 2016 में रमजान 06 जून से शुरु हुआ है।
रमजान और रोजा
रमजान के दौरान मुसलमान रोजा रखते हैं और इबादत में वक्त गुजारते हैं। इबादत के दूसरे तरीकों की तरह रोजा भी एक बाहरी रूप है जिसे हम जानते हैं। जो रोजा रखते हैं लेकिन गलत काम करते हैं वे रमजान के दौरान रोजा रखने का महत्व नहीं समझते। मुह मद साहब ने कहा है कि ऐसा करने वालों को सिर्फ भूख और प्यास ही मिलती है। रोजे में हम अपनी बुरी आदतों पर काबू कर हमेशा गलत नहीं करने की तैयारी करते हैं।
ये लोग न रखें रोजा
इस महीने में रोजे रखना सभी बालिग और स्वस्थ्य लोगों के लिए वाजिब (अनिवार्य) बताया गया है। बीमार, बूढ़े, सफ र कर रहे लोगों, गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माओं को रोजे रखने या ना रखने की आजादी दी गई है। मासिक धर्म से गुजर रही महिलाओं के लिए भी रोजा रखने की मनाही है। मासिक धर्म के खत्म होने के बाद रोजा रखना जरूरी है।
कब खाना खाया जाता है
रमजान के महीने में सुबह की अजान (नमाज का वक्त) से पहले सहरी (खाना) खा लिया जाता है। इसके बाद शाम को अजान (नमाज का वक्त) के बाद तय वक्त पर ही इ तार किया जाता है। इस बीच कुछ भी खाया-पिया नहीं जाता।
जकात का महत्व
हर मुसलमान के लिए जकात देना भी इस्लाम में वाजिब (फ र्ज) बताया गया है। जकात उस पैसे को कहते हैं जो अपनी कमाई से निकाल कर खुदा की राह में खर्च किया जाए। इस पैसे का इस्तेमाल समाज के गरीब तबके की सेवा के लिए किया जाता है। मान्यता है कि जकात रमजान के महीने में बीच में ही दे देनी चाहिए ताकि इस महीने के बाद आने वाली ईद पर गरीबों तक यह पहुंच सके और वह भी ईद की खुशियों में शरीक हो सकें। रमजान के अगले महीने की पहली तारीख को ईद-उल-फि त्र का त्यौहार मनाया जाता है।
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